169.4K
25.4K

Comments

Security Code

12806

finger point right
आपकी वेबसाइट बहुत ही अनमोल और जानकारीपूर्ण है।💐💐 -आरव मिश्रा

आप जो अच्छा काम कर रहे हैं उसे जानकर बहुत खुशी हुई -राजेश कुमार अग्रवाल

वेदधारा की सेवा समाज के लिए अद्वितीय है 🙏 -योगेश प्रजापति

आपको धन्यवाद धन्यवाद धन्यवाद -Ghanshyam Thakar

यह वेबसाइट बहुत ही उपयोगी और ज्ञानवर्धक है।🌹 -साक्षी कश्यप

Read more comments

Knowledge Bank

गरुड के दूसरा नाम क्या है?

गरुड के दूसरे नाम हैं - सुपर्ण, वैनतेय, नागारि, नागभीषण, जितान्तक, विषारि, अजित, विश्वरूपी, गरुत्मान, खगश्रेष्ठ, तार्क्ष्य, और कश्यपनन्दन।

श्राद्ध से बढ़कर कोई कर्म नहीं

श्राद्धात् परतरं नान्यच्छ्रेयस्करमुदाहृतम् । तस्मात् सर्वप्रयत्नेन श्राद्धं कुर्याद्विचक्षणः ॥ - (हेमाद्रि ) - श्राद्ध से बढ़कर कल्याणकारी और कोई कर्म नहीं होता । अतः प्रयत्नपूर्वक श्राद्ध करते रहना चाहिये।

Quiz

१३वीं शताब्दी की कोरिया की रानी हु ह्वांग - ओक का भारत में किस स्थान से संबंध था ?

हम पहले ही देख चुके हैं कि भगवान की कहानियों को सुनने के लिए रुचि आपके द्वारा कई जन्मों में किए गए अच्छे कर्मों के परिणामस्वरूप आती है। अंतिम लक्ष्य भगवान की प्राप्ति है। भगवान के साथ एक होना। अपना अलग व्यक्तिगत अ....

हम पहले ही देख चुके हैं कि भगवान की कहानियों को सुनने के लिए रुचि आपके द्वारा कई जन्मों में किए गए अच्छे कर्मों के परिणामस्वरूप आती है।

अंतिम लक्ष्य भगवान की प्राप्ति है।

भगवान के साथ एक होना।

अपना अलग व्यक्तिगत अस्तित्व खोकर भगवान में विलीन हो जाना।

इसे मोक्ष कहते हैं।

तो आज अगर आपकी रुचि भगवान की कथा सुनने में है, तो आप अध्यात्म में नवागत नहीं है।

आप भगवान के बारे में शायद ज्यादा नहीं जानते होंगे।

लेकिन भागवत कहता हैं=, आप शुरुआत नहीं कर रहे हैं।

तच्छ्रद्दधाना मुनयो ज्ञानवैराग्ययुक्तया।
पश्यन्त्यात्मनि चाऽऽत्मानं भक्त्या श्रुतिगृहीतया॥

पहला काम पहला चरण मन को शुद्ध करना है।

मन में कैसी अशुद्धियाँ होती हैं?

अनावश्यक इच्छाएं, क्रोध, लोभ, सही-गलत का भेद न कर पाना, अहंकार और प्रतिस्पर्धा करने की आदत।

सभी धार्मिक अभ्यास इन अशुद्धियों से छुटकारा पाने के लिए हैं।

यह पहला चरण है।

एक बार जब अशुद्धियाँ कम हो जाती हैं तो तत्त्व या वेद के सिद्धांतों को जानने की इच्छा आती है।

यह दूसरा चरण है।

इसका मतलब यह नहीं है कि आप वेद पाठशाला जाएंगे और वेद सीखना शुरू करेंगे।

परम सत्य की खोज शुरू होती है, आप साधक बन जाते हैं।

ज्ञान आपके पास किसी भी रूप में, कई रूपों में आ सकता है।

ज्ञान का यह अर्जन, कुछ ज्ञान का अर्जन यह तीसरा चरण है।

अगले चरण में, चौथे चरण में आप इस ज्ञान पर विचार करेंगे।

आप इसके बारे में सोचेंगे, इसमें अपनी बुद्धि लगाएंगे।

इसे मनन कहते हैं।

मनन के द्वारा ही आप इस ज्ञान की वैधता को मान पाएंगे।

हमारे शास्त्र यह नहीं कहते हैं कि सिर्फ इसलिए कि किसी विद्वान ने कुछ कहा है या किसी ग्रन्थ में लिखा है, आप इसे वैसे ही स्वीकार करो।

शास्त्र कहता है, इस पर विचार करो, मनन करो, इसे चुनौती दो, तभी स्वीकार करो।

यह है मनन।

एक बार जब आप ज्ञान की वैधता के बारे में सुनिश्चित हो जाएंगे, तो अगले चरण में, पांचवें चरण में जिसे निधिध्यासन कहते हैं, इसके द्वारा आप उस ज्ञान को अपने भीतर दृढ़ कर लेते हैं।

इसके बारे में लगातार सोचकर।

तब आप देखेंगे हैं कि यह ज्ञान हर जगह मौजूद है, यह हर जगह लागू होता है।

इसके बाद छठे चरण में आप वैराग्य, सांसारिक वस्तुओं और गतिविधियों के प्रति वैराग्य विकसित करते हैं।

आपको कुछ भी पसंद या नापसंद नहीं है।

इसके बाद भगवान की कथा सुनने की रुचि आती है।

सातवें चरण में।

तो आज अगर आपको भगवान के बारे में सुनने में रुचि है तो आप अपने पहले के जन्मों में पहले ही छह चरणों से गुजर चुके हैं।

तो आप एक नौसिखिया नहीं हैं।

आप नये नहीं हैं अध्यात्म में।

आप देर से नहीं आये हैं।

इसके बाद भक्ति आती है।

जब आप भगवान की महानता के बारे में सुनते हैं, तो भक्ति आती है और भक्ति आपको अंतिम लक्ष्य तक ले जाती है, भगवान के साथ एक होने का अंतिम लक्ष्य।

Recommended for you

हम सबसे ज्यादा प्यार किससे करते हैं? अपने आप से

 हम सबसे ज्यादा प्यार किससे करते हैं? अपने आप से

Click here to know more..

जनमेजय राजा बन जाते हैं

जनमेजय राजा बन जाते हैं

Click here to know more..

ललिता हृदय स्तोत्र

ललिता हृदय स्तोत्र

मीषत्फुल्लमुखाम्बुजस्मितकरैराशाभवान्धापहाम् । पाशं स....

Click here to know more..