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वेददारा मंत्र मेरे दैनिक शांति और ताकत का स्रोत हैं। धन्यवाद। 🌿 -Richa Shastry

हमारे परिवार को स्वास्थ्य खुशी प्रचुरता सुरक्षा और नकारात्मक ऊर्जा को दूर करने के लिए प्रार्थना करता हूं 🙏 -राकेश सिसौदिया

वेदधारा की सेवा समाज के लिए अद्वितीय है 🙏 -योगेश प्रजापति

सनातन धर्म के प्रति आपका प्रयास, अतुलनीय, और अद्भुत हे, आपके इस प्रयास के लिए कोटि कोटि नमन🙏🙏🙏 -User_smb31x

जय सनातन जय सनातनी 🙏 -विकाश ओझा

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रामचरितमानस पढ़ने से क्या फायदा?

जो लोग नियमित रूप से रामचरितमानस का पाठ करते हैं, वे श्रीराम जी की कृपा के पात्र हो जाते हैं। उन्हें जीवन में खुशहाली, समृद्धि और शान्ति की प्राप्ति होती हैं। रामचरितमानस पढ़ने से अपार आध्यात्मिक और मानसिक लाभ होता है। यह स्वास्थ्य, धन और खतरों से सुरक्षा देता है और एकाग्रता शक्ति को बढ़ाता है।

श्रीकृष्ण के संग की प्राप्ति

श्रीकृष्ण के संग पाने के लिए श्री राधारानी की सेवा, वृन्दावन की सेवा और भगवान के भक्तों की सेवा अत्यन्त आवश्यक हैं। इनको किए बिना श्री राधामाधव को पाना केवल दुराशा मात्र है।

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गुरु पूर्णिमा का किसके साथ संबन्ध है ?

ॐ श्रीगुरुभ्यो नमः हरिःॐ संहितापाठः त्र्यंबकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्। उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात्। पदपाठः त्र्यंबकमिति त्रि-अम्बकम्। यजामहे। सुगन्धिमिति सु-गन्धिम्। पुष्टिवर्धन�....

ॐ श्रीगुरुभ्यो नमः हरिःॐ
संहितापाठः
त्र्यंबकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्।
उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात्।
पदपाठः
त्र्यंबकमिति त्रि-अम्बकम्। यजामहे। सुगन्धिमिति सु-गन्धिम्। पुष्टिवर्धनमिति पुष्टि-वर्धनम्। उर्वारुकम्। इव। बन्धनात्। मृत्योः। मुक्षीय। मा। अमृतात्।
क्रमपाठः
त्र्यंबकं यजामहे। त्र्यंबकमिति त्रि-अम्बकम्। यजामहे सुगन्धिम्। सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्। सुगन्धिमिति सु-गन्धिम्। पुष्टिवर्धनमिति पुष्टि-वर्धनम्। उर्वारुकमिव। इव बन्धनात्। बन्धनान्मृत्योः। मृत्योर्मुक्षीय। मुक्षीय मा। माऽमृतात्। अमृतादित्यमृतात्।
जटापाठः
त्र्यंबकं यजामहे यजामहे त्र्यंबकन्त्र्यंबकं यजामहे। त्र्यंबकमिति त्रि-अम्बकम्। यजामहे सुगन्धिं सुगन्धिं यजामहे यजामहे सुगन्धिम्। सुगन्धिं पुष्टिवर्धनं पुष्टिवर्धनं सुगन्धिं सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्। सुगन्धिमिति सु-गन्धिम्। पुष्टिवर्धनमिति पुष्टि-वर्धनम्। उर्वारुकमिवेवोर्वारुकमुर्वारुकमिव। इव बन्धनाद्बन्धनादिवेव बन्धनात्। बन्धनान्मृत्योर्मृत्योर्बन्धनाद्बन्धनान्मृत्योः। मृत्योर्मुक्षीय मुक्षीय मृत्योर्मृत्योर्मुक्षीय। मुक्षीय मा मा मुक्षीय मुक्षीय मा। माऽमृतादमृतान्मा माऽमृतात्। अमृतादित्यमृतात्।
घनपाठः
त्र्यंबकं यजामहे यजामहे त्र्यंबकन्त्र्यंबकं यजामहे सुगन्धिं सुगन्धिं यजामहे त्र्यंबकं त्र्यंबकं यजामहे सुगन्धिम्। त्र्यंबकमिति त्रि-अम्बकम्। यजामहे सुगन्धिं सुगन्धिं यजामहे यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनं पुष्टिवर्धनं सुगन्धिं यजामहे यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्। सुगन्धिं पुष्टिवर्धनं पुष्टिवर्धनं सुगन्धिं सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्। सुगन्धिमिति सु-गन्धिम्। पुष्टिवर्धनमिति पुष्टि-वर्धनम्। उर्वारुकमिवेवोर्वारुकमुर्वारुकमिव बन्धनाद्बन्धनादिवोर्वारुकमुर्वारुकमिव बन्धनात्। इव बन्धनाद्बन्धनादिवेव बन्धनान्मृत्युर्मृत्योर्बन्धनादिवेव बन्धनान्मृत्योः। बन्धनान्मृत्योर्मृत्योर्बन्धनाद्बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय मुक्षीय मृत्योर्बन्धनाद्बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय। मृत्योर्मुक्षीय मुक्षीय मृत्योर्मृत्योर्मुक्षीय मा मा मुक्षीय मृत्योर्मृत्योर्मुक्षीय मा। मुक्षीय मा मा मुक्षीय मुक्षीय माऽमृतादमृतान्मा मुक्षीय मुक्षीय माऽमृतात्। माऽमृतादमृतान्मा माऽमृतात्। अमृतादित्यमृतात्।
हरिःॐ

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