शैले शैले न माणिक्यं मौक्तिकं न गजे गजे |
साधवो नहि सर्वत्र चन्दनं न वने वने ||
अनमोल वस्तु हर जगह उपलब्ध नहीं होता है| हर पर्वत में माणिक्य नही होता है| हर हाथी के मस्तक में मौक्तिक नहीं होता है| हर वन में चन्दन नहीं होता है और हर स्थान पर अच्छे लोग नहीं होते हैं|
महत्वाद्भारवत्वाच्च महाभारतमुच्यते। एक तराजू की एक तरफ महाभारत और दूसरी बाकी सभी धर्म ग्रन्थ रखे गये। देवों और ऋषियों के सान्निध्य में व्यास जी के आदेश पर यह किया गया था। महाभारत बाकी सभी ग्रन्थों से भारी दिखाई दिया। भार और अपने महत्त्व के कारण इस ग्रन्थ का नाम महाभारत रखा गया। धर्म और अधर्म का दृष्टांतों के साथ विवेचन महाभारत के समान अन्य किसी भी ग्रन्थ में नहीं हुआ है।
पूजा ईश्वर से जुड़ने और उनकी उपस्थिति का अनुभव करने के लिए की जाती है। यह आत्मा और भगवान के बीच की कल्पित बाधा को दूर करती है, जिससे भगवान का प्रकाश अबाधित रूप से चमकता है। पूजा के माध्यम से हम अपने जीवन को भगवान की इच्छा के अनुरूप ढालते हैं, जिससे हमारा शरीर और कर्म ईश्वर की दिव्य उद्देश्य के उपकरण बन जाते हैं। यह अभ्यास हमें भगवान की लीला के आनंद और सुख का अनुभव करने में मदद करता है। पूजा में लीन होकर, हम संसार को दिव्य क्षेत्र के रूप में और सभी जीवों को भगवान की अभिव्यक्ति के रूप में देख सकते हैं। इससे एक गहरी एकता और आनंद की भावना पैदा होती है, जिससे हम दिव्य आनंद में डूबकर उसके साथ एक हो जाते हैं।