मनस्येकं वचस्येकं कर्मण्येकं महात्मनाम् |
मनस्यन्यद् वचस्यन्यत् कर्मण्यन्यद् दुरात्मनाम् ||
अच्छे लोगों के मन में, वाणी में और क्रिया में एक ही चीज होती है| वे जो सोचते हैं वह ही बोलते हैं और जो बोलते हैं वह ही करते हैं| बुरे लोगों के मन में अलग चीज, वाणी में अलग चीज और क्रिया में अलग चीज होती है| वे सोचते कुछ हैं, बोलते कुछ और हैं और करते कुछ और हैं|
ॐ विष्णुर्विष्णुर्विष्णुः श्रीभगवतो महापुरुषस्य विष्णोराज्ञया प्रवर्तमानस्य, अद्य श्रीब्रह्मणो द्वितीय परार्धे श्वेतवराहकल्पे वैवस्वतमन्वन्तरे अष्टाविंशतितमे कलियुगे प्रथमे पादे जम्बूद्वीपे भारतवर्षे भरतखण्डे......क्षेत्रे.....मासे....पक्षे......तिथौ.......वासर युक्तायां.......नक्षत्र युक्तायां अस्यां वर्तमानायां.......शुभतिथौ........गोत्रोत्पन्नः......नामाहं श्रुतिस्मृतिपुराणोक्त-सत्फलावाप्त्यर्थं समस्तपापक्षयद्वारा सर्वारिष्टशान्त्यर्थं सर्वाभीष्टसंसिद्ध्यर्थं विशिष्य......प्राप्त्यर्थं सवत्सगोदानं करिष्ये।
संत हमें नि:स्वार्थ, कामना रहित, पवित्र, अभिमान रहित, और सरल जीवन जीना सिखाते हैं। वे हमें ईश्वर में विश्वास के साथ, सत्य और धर्म का आचरण करके, सबसे प्रेम की भावना रखकर, श्रद्धा, क्षमा, मैत्री, दया, करुणा, और प्रसन्नता के साथ आगे बढने की प्रेरणा देते हैं।