तक्षकस्य विषं दन्ते मक्षिकाया मुखे विषम्|
वृश्चिकस्य विषं पुच्छे सर्वाङ्गे दुर्जनस्य तत्|
सांप के दांत में विष होता है| मक्खी के मुह में विष होता है| बिच्छू के पूंछ में विष होता है| दुष्ट जन के शरीर के हर अंग में विष होता है|
गायत्री मंत्र के देवता सविता यानि सूर्य हैं। परंतु मंत्र को स्त्रीरूप मानकर गायत्री, सावित्री, और सरस्वती को भी इस मंत्र के अभिमान देवता मानते हैं।
कृत युग में - त्रिपुरसुंदरी, त्रेता युग में - भुवनेश्वरी, द्वापर युग में - तारा, कलि युग में - काली।
हज़ारों वर्ष तपस्या करने के बाद भी अगर ऋषि मुनि लोग क्रोध और अहंकार से मुक्त नहीं होते तो आम आदमी के बारे में क्या कहना?
अयोध्या श्रीराम जी के लिए प्रिय था
वेदसार शिव स्तोत्र
पशूनां पतिं पापनाशं परेशं गजेन्द्रस्य कृत्तिं वसानं वर�....
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