मातेव रक्षति पितेव हिते नियुङ्क्ते
कान्तेव चाऽपि रमयत्यपनीय खेदम्|
लक्ष्मीं तनोति वितनोति च दिक्षु कीर्तिं
किं किं न साधयति कल्पलतेव विद्या|
विद्या माता की तरह पालन पोषण करती है| विद्या पिता की तरह अच्छा मार्गदर्शन करती है| विद्या पत्नी की तरह दुःख को दूर कर के सुख देती है| विद्या लक्ष्मी को बढाती है| विद्या चारों दिशाओं मे कीर्ति प्राप्त कराती है| यह विद्या एक कल्पवृक्ष की तरह है| ये क्या क्या नहीं कर सकती?
ब्रह्मा-मरीचि-कश्यप-विवस्वान-वैवस्वत मनु-इक्ष्वाकु-विकुक्षि-शशाद-ककुत्सथ-अनेनस्-पृथुलाश्व-प्रसेनजित्-युवनाश्व-मान्धाता-पुरुकुत्स-त्रासदस्यु-अनरण्य-हर्यश्व-वसुमनस्-सुधन्वा-त्रय्यारुण-सत्यव्रत-हरिश्चन्द्र-रोहिताश्व-हारीत-चुञ्चु-सुदेव-भरुक-बाहुक-सगर-असमञ्जस्-अंशुमान-भगीरथ-श्रुत-सिन्धुद्वीप-अयुतायुस्-ऋतुपर्ण-सर्वकाम-सुदास्-मित्रसह-अश्मक-मूलक-दिलीप-रघु-अज-दशरथ-श्रीराम जी
गंगा, यमुना और सरस्वती ।