मातेव रक्षति पितेव हिते नियुङ्क्ते
कान्तेव चाऽपि रमयत्यपनीय खेदम्|
लक्ष्मीं तनोति वितनोति च दिक्षु कीर्तिं
किं किं न साधयति कल्पलतेव विद्या|

 

विद्या माता की तरह पालन पोषण करती है| विद्या पिता की तरह अच्छा मार्गदर्शन करती है| विद्या पत्नी की तरह दुःख को दूर कर के सुख देती है| विद्या लक्ष्मी को बढाती है| विद्या चारों दिशाओं मे कीर्ति प्राप्त कराती‌ है| यह विद्या एक कल्पवृक्ष की तरह है| ये क्या क्या नहीं कर सकती?

 

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वेदधारा का कार्य सराहनीय है, धन्यवाद 🙏 -दिव्यांशी शर्मा

हिंदू धर्म के पुनरुद्धार और वैदिक गुरुकुलों के समर्थन के लिए आपका कार्य सराहनीय है - राजेश गोयल

वेदधारा से जुड़ना एक आशीर्वाद रहा है। मेरा जीवन अधिक सकारात्मक और संतुष्ट है। -Sahana

वेदधारा के प्रयासों के लिए दिल से धन्यवाद 💖 -Siddharth Bodke

वेदधारा सनातन संस्कृति और सभ्यता की पहचान है जिससे अपनी संस्कृति समझने में मदद मिल रही है सनातन धर्म आगे बढ़ रहा है आपका बहुत बहुत धन्यवाद 🙏 -राकेश नारायण

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