रत्नैर्महार्हैस्तुतुषुर्न देवा न भेजिरे भीमविषेण भीतिम्।
सुधां विना न प्रययुर्विरामं न निश्चितार्थाद्विरमन्ति धीराः।
देवों ने अमृत को पाने के लिए समुद्र का मंथन करना शुरू किया| पहले जब उनको कीमती रत्न मिलें तो वो उस से संतुष्ट होकर नहीं रुके| जब जानलेवा विष समुद्र से बाहर निकला तब भी वो डरकर रुके नहीं| उनका लक्ष्य था अमृत को पाना और अमृत के मिलने पर ही वे उस काम से विराम लिए| धैर्यवान लोग अपने लक्ष्य की प्राप्ति तक विराम नहीं लेते|
नहीं। क्यों कि गाय अपने बछडे को जितना चाहिए उससे कई गुना दूध उत्पन्न करती है। गाये के दूध के तीन हिस्से होते हैं - वत्सभाग, देवभाग और मनुष्यभाग। वत्सभाग अपने बछडे के लिए, देवभाग पूजादियों में उपयोग के लिए और मनुष्यभाग मानवों के उपयोग के लिए।
पूषा रेवत्यन्वेति पन्थाम्। पुष्टिपती पशुपा वाजवस्त्यौ। इमानि हव्या प्रयता जुषाणा। सुगैर्नो यानैरुपयातां यज्ञम्। क्षुद्रान्पशून्रक्षतु रेवती नः। गावो नो अश्वां अन्वेतु पूषा। अन्नं रक्षन्तौ बहुधा विरूपम्। वाजं सनुतां यजमानाय यज्ञम्। (तै.ब्रा.३.१.२)