रत्नैर्महार्हैस्तुतुषुर्न देवा न भेजिरे भीमविषेण भीतिम्।
सुधां विना न प्रययुर्विरामं न निश्चितार्थाद्विरमन्ति धीराः।

 

देवों ने अमृत को पाने के लिए समुद्र का मंथन करना शुरू किया| पहले जब उनको कीमती रत्न मिलें तो वो उस से संतुष्ट होकर नहीं रुके| जब जानलेवा विष समुद्र से बाहर निकला तब भी वो डरकर रुके नहीं| उनका लक्ष्य था अमृत को पाना और अमृत के मिलने पर ही वे उस काम से विराम लिए| धैर्यवान लोग अपने लक्ष्य की प्राप्ति तक विराम नहीं लेते|

 

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हार्दिक आभार। -प्रमोद कुमार शर्मा

आपकी वेबसाइट से बहुत कुछ सीखने को मिलता है।🙏 -आर्या सिंह

वेदधारा से जब से में जुड़ा हूं मुझे अपने जीवन में बहुत कुछ सीखने को मिला वेदधारा के विचारों के माध्यम से हिंदू समाज के सभी लोगों को प्रेरणा लेनी चाहिए। -नवेंदु चंद्र पनेरु

🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏 -मदन शर्मा

भारतीय संस्कृति व समाज के लिए जरूरी है। -Ramnaresh dhankar

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