नाऽभिषेको न संस्कारः सिंहस्य क्रियते वने|
विक्रमार्जितसत्त्वस्य स्वयमेव मृगेन्द्रता|
शेर का वन में कोई राजाभिषेक नहीं करता| जैसे मनुष्यों के राजा का संस्कार होता है वैसे कोई संस्कार भी शेर का वन में किया नहीं जाता| फिर भी वह बाकी मृगों के द्वारा एनं का राजा माना जाता है| क्योंकि शेर ने वह राज्य अपने पराक्रम से प्राप्त किया है| ऐसे ही जिस चीज को हम पराक्रम से, अपने बल से प्राप्त करते हैं, वह हमारा होता है|
फूल, फल और पत्ते जैसे उगते हैं, वैसे ही इन्हें चढ़ाना चाहिये'। उत्पन्न होते समय इनका मुख ऊपरकी ओर होता है, अतः चढ़ाते समय इनका मुख ऊपरकी ओर ही रखना चाहिये। इनका मुख नीचेकी ओर न करे । दूर्वा एवं तुलसीदलको अपनी ओर और बिल्वपत्र नीचे मुखकर चढ़ाना चाहिये। इनसे भिन्न पत्तोंको ऊपर मुखकर या नीचे मुखकर दोनों ही प्रकारसे चढ़ाया जा सकता है । दाहिने हाथ करतलको उतान कर मध्यमा, अनामिका और अँगूठेकी सहायतासे फूल चढ़ाना चाहिये।
जमवाय माता पहले बुढवाय माता कहलाती थी। दुल्हेराय का राजस्थान आने के बाद ही इनका नाम जमवाय माता हुआ।