अयं निजः परो वेति गणना लघुचेतसाम्|
उदारचरितानां तु वसुधैव कुटुम्बकम्|
यह व्यक्ति अपना है और यह व्यक्ति पराया है, ऐसी सोच छोटे लोगों की होती है| महान पुरुषों के लिए तो यह समस्त भूमि अपने परिवार के समान होता है|
जिसने इहलोक में जितना अन्नदान किया उसके लिए परलोक में उसका सौ गुणा अन्न प्रतीक्षा करता रहता है। जो दूसरों को न खिलाकर स्वयं ही खाता है वह जानवर के समान होता है।
हिंगलाज माता मंदिर, बलूचिस्तान।