पृथिव्यां त्रीणि रत्नानि जलमन्नं सुभाषितम्|
मूढैः पाषाणखण्डेषु रत्नसंज्ञा विधीयते|

 

इस भूलोक पर तीन ही चीज रत्न कहलाते हैं| पहला है पानी, दूसरा है भोजन और तीसरा है सुभाषित| मूर्ख लोग पत्थर के टुकडें ही रत्न हैं ऐसा समझते हैं|

 

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From where this shlok is derived? -Prashant
Subhashita Ratna Bhandagar Replied by Vedadhara

आप लोग वैदिक गुरुकुलों का समर्थन करके हिंदू धर्म के पुनरुद्धार के लिए महान कार्य कर रहे हैं -साहिल वर्मा

वेदधारा समाज की बहुत बड़ी सेवा कर रही है 🌈 -वन्दना शर्मा

वेद पाठशालाओं और गौशालाओं के लिए आप जो कार्य कर रहे हैं उसे देखकर प्रसन्नता हुई। यह सभी के लिए प्रेरणा है....🙏🙏🙏🙏 -वर्षिणी

वेदधारा सनातन संस्कृति और सभ्यता की पहचान है जिससे अपनी संस्कृति समझने में मदद मिल रही है सनातन धर्म आगे बढ़ रहा है आपका बहुत बहुत धन्यवाद 🙏 -राकेश नारायण

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श्रीराम जी का अचल स्वरूप

श्रीराम जी न तो कहीं जाते हैं, न कहीं ठहरते हैं, न किसी के लिए शोक करते हैं, न किसी वस्तु की आकांक्षा करते हैं, न किसी का परित्याग करते हैं, न कोई कर्म करते हैं। वे तो अचल आनन्दमूर्ति और परिणामहीन हैं, अर्थात उनमें कोई परिवर्तन नहीं होता। केवल माया के गुणों के संबंध से उनमें ये बातें होती हुई प्रतीत होती हैं। श्रीराम जी परमात्मा, पुराणपुरुषोत्तम, नित्य उदय वाले, परम सुख से सम्पन्न और निरीह अर्थात् चेष्टा से रहित हैं। फिर भी माया के गुणों से सम्बद्ध होने के कारण उन्हें बुद्धिहीन लोग सुखी अथवा दुखी समझ लेते हैं।

भीष्म पितामह अपने पूर्व जन्म में कौन थे?

भीष्म जी अपने पूर्व जन्म में द्यौ थे जो अष्ट वसुओं में से एक हैं। वे सभी ऋषि वशिष्ठ के श्राप के कारण धरती पर जन्म लिए थे। उनकी मां, गंगा ने उन्हें श्राप से राहत देने के लिए जन्म के तुरंत बाद उनमें से सात को डुबो दिया। सिर्फ भीष्म जी जीवित रहे।

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महालय श्राद्ध किसको कहते हैं ?

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