जानिए - गायत्री मंत्र का जप करने से प्राण शक्ति की वृद्धि, सौर शक्ति की प्राप्ति, बुद्धि की शुद्धि, सन्मार्ग में प्रवृत्ति और आस्तिकता प्राप्त कैसे होती हैं ।


 

ॐ भूर्भुवः स्वः । 

तत् सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि । 

धियो यो नः प्रचोदयात् ॥

(यजुर्वेद -  ३६-३; ३-३; २२-९, ३०-२; ऋग्वेद - ३ - ६२-१० ; सामवेद -  १४६२; तैत्तिरीय संहिता -  १-५-६-४; तैत्तिरीय आरण्यक -  १-११-२) 

 


 

गायत्री मंत्र का अर्थ

अन्वय - ॐ भूः भुवः स्वः । सवितुः देवस्य तत् वरेण्यं भर्गः धीमहि । यः नः धियः प्रचोदयात् ।

शब्दार्थ — (ॐ ) रक्षक परमात्मन् (भूः) सत्-स्वरूप, (भुवः) चित्-स्वरूप, (स्वः) आनन्द-स्वरूप, (सवितुः) संसार के उत्पादक, (देवस्य) दिव्यगुणयुक्त परमात्मा के, (तत्) उस, (वरेण्यम्) सर्वश्रेष्ठ, (भर्गः) तेज को, (धीमहि ) धारण करते हैं । (यः) जो परमात्मा, (नः) हमारी, (घियः) बुद्धियों को, (प्रचोदयात्) सत्कर्मों में प्रेरित करें ।

भावार्थ - सच्चिदानन्द-स्वरूप, संसार के उत्पादक, देव परमात्मा के उस सर्वोत्कृष्ट तेज को हम धारण करते हैं । वह परमात्मा हमारी वुद्धियों को सत्कर्मों में प्रेरित करें ।

 

गायत्री मंत्र जप के लाभ

प्राणों की रक्षा करने वाले को गायत्री कहते हैं । गायत्री के जप से प्राणशक्ति की वृद्धि होती है और शारीरिक तथा बौद्धिक न्यूनता दूर होती है । 

गायत्री को सावित्री भी कहते हैं । सावित्री यह सविता अर्थात्  सूर्य या ब्रह्म से संबद्ध होने से यह सावित्री मंत्र कहलाता है ।  इसका जप करने से शरीर में सौर शक्ति की उत्पत्ति होती है ।

गायत्री ही ब्रह्मवर्चस् या ब्रह्मतेज है । गायत्री के नियमित जप से ब्रह्मवर्चस् प्राप्त होता है। इस ब्रह्मवर्चस् से ही मनुष्य संयमी, जितेन्द्रिय और मनोनिग्रही होता है। 

 

गायत्री मंत्र जीवन को सुखी कैसे बनाता है?

मानव-जीवन को सुखी बनाने के लिए दो बातों की आवश्यकता है - आस्तिकता और बुद्धि की शुद्धता । ये दोनों कार्य गायत्री मन्त्र से सिद्ध होते हैं। 

गायत्री मंत्र के तीन भाग हैं - 

(क) महाव्याहृति - ॐ भूर्भुवः स्वः । इसमें परमात्मा के स्वरूप का वर्णन है कि वह सत्, चित् और आनन्दरूप है । उसके आनन्द की प्राप्ति ही मनुष्य जीवन का लक्ष्य है । 

(ख) तत् सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि - उस आनन्द की प्राप्ति के लिए परमात्मा के तेज या ज्योति को हृदय में धारण करना होगा । परमात्मारूपी दिव्य रत्न को हृदय में रखे बिना ज्ञान की शक्ति ही उद्बुद्ध नहीं होगी । 

बुद्धि की शुद्धि के लिए आस्तिकता, ईश्वर विश्वास और ईश्वर की सर्वव्यापकता का ज्ञान चाहिए। मंत्र का यह द्वितीय भाग बुद्धि की शुद्धि और आत्मिक शक्ति को उत्पन्न करता है । 

(ग) धियो यो नः प्रचोदयात् - यह गायत्री मंत्र के जप का फल बताता है । ईश्वररूपी मणि को हृदय में धारण करने से उसका प्रकाश बुद्धि को शुद्ध करता है । बुद्धि स्वयं सन्मार्ग पर चलने लगती है । वह अकर्तव्य का परित्याग करके कर्तव्य मार्ग को ही ग्रहण करती है । इस प्रकार मनुष्य का जीवन सुख की ओर अग्रसर होता है ।

इस प्रकार गायत्री मंत्र का जप करने से प्राण शक्ति की वृद्धि, सौर शक्ति की प्राप्ति, बुद्धि की शुद्धि, सन्मार्ग में प्रवृत्ति और आस्तिकता प्राप्त होती हैं ।

 

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