तुम प्रेम हो तुम प्रीत हो
मेरी बांसुरी का गीत हो
तुम प्रेम हो तुम प्रीत हो
मनमीत हो राधे मेरी मनमीत हो
तुम प्रेम हो तुम प्रीत हो
मेरी बांसुरी का गीत हो
तुम ह्रदय में प्राण में कान्हा
तुम ह्रदय में प्राण में
निसदिन तुम्हीं हो ध्यान में
तुम ह्रदय में प्राण में
निसदिन तुम्हीं हो ध्यान में
हर रोम में तुम हो बसे
तुम विश्वास के आह्वान में
तुम प्रेम हो तुम प्रीत हो तुम गीत हो काहना
मेरे मनमीत हो
तुम प्रेम हो तुम प्रीत हो
मनमीत हो राधे मेरी मनमीत हो
तुम प्रेम हो तुम प्रीत हो
मेरी बांसुरी का गीत हो
हूँ मैं जहाँ तुम हो वहाँ राधा
हूँ मैं जहाँ तुम हो वहाँ
तुम बिन नहीं है कुछ यहाँ
हूँ मैं जहाँ तुम हो वहाँ
तुम बिन नहीं है कुछ यहाँ
मुझमें धड़कती हो तुम्ही
तुम दूर मुझसे हो कहाँ
तुम प्रेम हो तुम प्रीत हो
मनमीत हो राधे मेरी मनमीत हो
तुम प्रेम हो तुम प्रीत हो
मनमीत हो राधे मेरी मनमीत हो
तुम प्रेम हो तुम प्रीत हो
परमात्मा का स्पर्श हो राधे
परमात्मा का स्पर्श हो
पुलकित ह्रदय का हर्ष हो
परमात्मा का स्पर्श हो
पुलकित ह्रदय का हर्ष हो
तुम हो समर्पण का शिखर
तुम हो समर्पण का शिखर
तुम ही मेरा उत्कर्ष हो
तुम प्रेम हो तुम प्रीत हो
मेरी भावना की तुम राधे जीत हो
तुम प्रेम हो तुम प्रीत हो
मनमीत हो राधे मेरी मनमीत हो
तुम प्रेम हो तुम प्रीत हो
मनमीत हो राधे मेरी मनमीत हो
कामधेनु के श्राप की वजह से दिलीप को संतान नहीं हुई। महर्षि वसिष्ठ के उपदेश के अनुसार दिलीप ने कामधेनु की बेटी नन्दिनी की दिन रात सेवा की। एक बार एक शेर ने नन्दिनी को जगड लिया तो दिलीप ने अपने आप को नन्दिनी की जगह पर अर्पित किया। सेवा से खुश होकर नन्दिनी ने दिलीप को पुत्र प्राप्ति का आशीर्वाद दिया।
राजस्थान का अलवर शहर राजा शाल्व की राजधानी हुआ करता था, जिन्हें श्रीकृष्ण ने मारा था।
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