ॐ काला भैरुँ कपिला केश कानो कुण्डल भगवा वेष । तिर पतर लियो हाथ, चौंसठ जोगनियाँ खेले पास, आस माई। पास माई, पास माई । सीस माई सामने -सामने गादी बैठे राजा, पीड़ो बैठे प्रजा मोहि, राजा को बनाऊँ कूकड़ा। प्रजा को बनाऊँ गुलाम शब्द साँचा, पिण्ड काँचा, राजगुरु का वचन जुग जुग साँचा ।
विधि - यह मंत्र ११ दिन में सिद्ध हो जाता है । हर दिन दो माला करें । जाप से पहले भैरव जी का फोटो रखकर पूजा करें । ११ वें दिन दशांश हवन, भोग में मद्य, मांस, लड्डू, दहीबड़े, नारियल, बाकला सवा पाव रोट सवा पाव, लाल कनेर के फूल अर्पित करें । मंत्र सिद्ध होने पर जिस स्थान पर मान सम्मान चाहिए, मंत्र जापकर फूँक मारें ।
भगवान विष्णु के पवित्र नामों का गायन सभी समय और स्थानों पर किया जा सकता है। इस भगवान के कीर्तन (जाप) के लिए कोई अशुद्धता का सवाल ही नहीं उठता जो सदा पवित्र हैं। भगवान की उपासना के लिए समय, स्थान या शुद्धता पर कोई प्रतिबंध नहीं है, क्योंकि वे हमेशा पवित्र होते हैं। यह दर्शाता है कि कोई भी कृष्ण, गोविंद और हरि के नामों का जाप हमेशा कर सकता है, चाहे परिस्थिति या व्यक्ति की शुद्धता की स्थिति कुछ भी हो। ऋषि पुष्टि करते हैं कि भगवान भक्त की शुद्धता या अशुद्धता से दूषित नहीं होते। इसके विपरीत, भगवान भक्त को शुद्ध करते हैं और उन्हें स्वीकार करते हैं, जो उनकी परम पवित्रता को दर्शाता है।
श्रीराम जी न तो कहीं जाते हैं, न कहीं ठहरते हैं, न किसी के लिए शोक करते हैं, न किसी वस्तु की आकांक्षा करते हैं, न किसी का परित्याग करते हैं, न कोई कर्म करते हैं। वे तो अचल आनन्दमूर्ति और परिणामहीन हैं, अर्थात उनमें कोई परिवर्तन नहीं होता। केवल माया के गुणों के संबंध से उनमें ये बातें होती हुई प्रतीत होती हैं। श्रीराम जी परमात्मा, पुराणपुरुषोत्तम, नित्य उदय वाले, परम सुख से सम्पन्न और निरीह अर्थात् चेष्टा से रहित हैं। फिर भी माया के गुणों से सम्बद्ध होने के कारण उन्हें बुद्धिहीन लोग सुखी अथवा दुखी समझ लेते हैं।