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वेदधारा की सेवा समाज के लिए अद्वितीय है 🙏 -योगेश प्रजापति

वेदधारा समाज की बहुत बड़ी सेवा कर रही है 🌈 -वन्दना शर्मा

अद्वितीय website -श्रेया प्रजापति

आपकी वेबसाइट ज्ञान और जानकारी का भंडार है।📒📒 -अभिनव जोशी

आपकी वेबसाइट बहुत ही अद्भुत और जानकारीपूर्ण है। -आदित्य सिंह

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राजा दिलीप की वंशावली क्या है?

ब्रह्मा-मरीचि-कश्यप-विवस्वान-वैवस्वत मनु-इक्ष्वाकु-विकुक्षि-शशाद-ककुत्सथ-अनेनस्-पृथुलाश्व-प्रसेनजित्-युवनाश्व-मान्धाता-पुरुकुत्स-त्रासदस्यु-अनरण्य-हर्यश्व-वसुमनस्-सुधन्वा-त्रय्यारुण-सत्यव्रत-हरिश्चन्द्र-रोहिताश्व-हारीत-चुञ्चु-सुदेव-भरुक-बाहुक-सगर-असमञ्जस्-अंशुमान-भगीरथ-श्रुत-सिन्धुद्वीप-अयुतायुस्-ऋतुपर्ण-सर्वकाम-सुदास्-मित्रसह-अश्मक-मूलक-दिलीप-रघु-अज-दशरथ-श्रीराम जी

सनातन धर्म में प्रथाओं का विकास -

सनातन धर्म, जो अनादि मार्ग है, मूलभूत मूल्यों को अपरिवर्तित रखता है। हालांकि, इसकी प्रथाएं और रीति-रिवाज विकसित हुए हैं और प्रासंगिक बने रहने के लिए उन्हें ऐसा करते रहना चाहिए। कुछ लोग मानते हैं कि हिंदू धर्म, अपनी सभी प्रथाओं के साथ, अपरिवर्तित है। यह दृष्टिकोण इतिहास और पवित्र ग्रंथों की गलत व्याख्या करता है। जबकि सनातन धर्म शाश्वत सिद्धांतों को समाहित करता है, इसका यह अर्थ नहीं है कि हर नियम और रिवाज स्थिर हैं। हिंदू दर्शन स्थान (देश), समय (काल), व्यक्ति (पात्र), युगधर्म (युग का धर्म), और लोकाचार (स्थानीय रिवाज) के आधार पर प्रथाओं को अनुकूलित करने के महत्व पर जोर देता है। यह अनुकूलन सुनिश्चित करता है कि सनातन धर्म प्रासंगिक बना रहे। प्रथाओं का विकास परंपरा की वृद्धि और जीवंतता के लिए आवश्यक है। पुराने प्रथाओं का कठोर पालन उन्हें अप्रचलित और वर्तमान युग से असंबद्ध बनाने का जोखिम उठाता है। इसलिए, जबकि मूलभूत मूल्य स्थिर रहते हैं, प्रथाओं का विकास सनातन धर्म की स्थायी प्रासंगिकता और जीवंतता सुनिश्चित करता है।

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कथासरित्सागर किसकी रचना है ?

अपनी मां की दुष्ट बुद्धि को पहचानने पर आदिशेष चले गये । तपस्या करने लगे । उग्र तपस्या । सिर्फ हवा पीकर । व्रतों का आचरण करके । मन और इंद्रियों को नियंत्रण में रखकर । कई जगहों पर उन्होंने तपस्या की । गन्धमादन पर्वत, प�....

अपनी मां की दुष्ट बुद्धि को पहचानने पर आदिशेष चले गये ।
तपस्या करने लगे । उग्र तपस्या ।
सिर्फ हवा पीकर ।
व्रतों का आचरण करके ।
मन और इंद्रियों को नियंत्रण में रखकर ।
कई जगहों पर उन्होंने तपस्या की ।
गन्धमादन पर्वत, पुष्कर, बदर्याश्रम, गोकर्ण, हिमालय की घाटियां, प्रसिद्ध मन्दिर, दिव्य तीर्थ ।
शरीर सूखकर हड्डी और त्वचा ही बची ।

ब्रह्माजी आये आदिशेष के पास ।
यह क्या कर रहे हो ?
तुम्हारी इस घोर तपस्या के ताप से सारा जगत पीडा में है ।
क्यों यह कर रहे हो ? बताओ ।
मेरे भाई लोग सारे मन्द बुद्धि हैं ।
वे एक दूसरे की गलती निकालने में ही लगे रहते हैं ।
मुझे उनके साथ कोई रिश्ता नहीं चाहिए ।

विनता और उनके पुत्रों के साथ उनकी दुश्मनी है ।
ईर्ष्या है उनके प्रति ।
गरुड भी मेरा भाई है ।
मैं इस शरीर को त्याग देना चाहता हूं ।

ब्रह्माजी ने कहा - मुझे तुम्हारे भाइयों के बारे में सब पता है ।
छोडो उनकी बात ।
कद्रू ने अपनी बहन के साथ अच्छा नहीं किया ।
कद्रू के पुत्रों को भी इसका फल भुगतना पडेगा ।
लेकिन तुम्हें इन सबसे कुछ लेना देना नहीं होगा ।
लेकिन तुम्हें इन सबसे कुछ लेना देना नहीं होगा ।
तुम्हारी धर्म बुद्धि को देखकर बडी प्रसन्नता हुई ।

वर मांगो ।

मुझे धर्म में अटल रहना है ।
ब्रह्माजी ने वह वर दे दिया ।
और बताया लोक कल्याण के लिए एक और काम करो ।
पृथ्वी अस्थिर है । कंपकंपी करती रहती है ।
इसके कारण सभी प्राणी, पेड पौधे सब परेशान हैं।
तुम उसे अपने फणों के ऊपर धारण करके स्थायी बना दो ।

पृथ्वी ने ही स्वयं आदिशेष को अपने नीचे जाने का रास्ता दिखाया ।
आदिशेष पृथ्वी के नीचे गये और उसे अपने फणों में धारण करके दृढ और स्थायी बना दिये ।
ब्रह्माजी ने गरुड को आदिशेष की मदद के लिए नियुक्त किया ।
आदिशेष के चले जाने पर वासुकि नागों का राजा बने ।

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