जानिए एकादशी की पूजा शास्त्रानुसार कैसे करें


 

एकादशी के दिन भगवान विष्णु की पूजा शालिग्राम, मूर्ति या फोटो पर करना चाहिए ।

 

सब से पहले शंख, चक्र धारण करने वाले, गले में वैजयन्ती माला धारण करने वाले, शेषशायी भगवान विष्णु का ध्यान करना चाहिये।

ध्यान - शान्ताकारं भुजगशयनं पद्मनाभं सुरेशं, विश्वाधारं गगनसदृशं मेघवर्णं शुभांगम् । 

लक्ष्मीकान्तं कमलनयनं योगिभिर्ध्यानगम्यं, वन्दे विष्णुं भव भयहरं सर्वलोकैकनाथम् ॥

 

हाथ में पुष्प लेकर आवाहन करें -

आवाहन - आगच्छ देव देवेश तेजो राशे जगत्पते । क्रियामाणां मया पूजां गृहाण सुरसत्तम ॥ 

 

आवाहन के पश्चात् पुष्प लेकर आसन दें -

आसन - नाना रत्न समायुक्तं कार्तस्वर, विभूषितम् । आसनं देव देवेश प्रीत्यर्थं प्रति गृह्यताम् ॥ 

 

आसन पर शालिग्राम शिला को रख कर पाद्य रूप में जल दे -

पाद्य - गंगादि सर्वतीर्थेभ्यो मया प्रार्थनया हृतम् । तोयमेतत्सुख स्पर्शं देवेश प्रति गृह्यताम् ॥ 

(अगर फोटो होतो पाद्य, स्नान इत्यादि चमच से भगवान को दिखाकर जल पात्र में छोड दें ।)

 

पाद्य देने के पश्चात् अर्घ पात्र में गन्ध अक्षत-पुष्प एवं जल डालकर अर्घ्य दें-

अर्घ्य - नमस्ते देव देवेश नमस्ते धरणीधर । नमस्ते कमलाकान्त गृहाणार्घ्यं नमोऽस्तुते ॥ 

 

अर्घ्य देने के पश्चात् आचमन के लिये शुद्ध जल दें -

आचमन - कर्पूरं वासितं तोयं मन्दाकिन्या समाहृतम्। आचम्यतां जगन्नाथ मया दत्तं हि भक्तितः ॥ 

 

आचमन के पश्चात् शुद्ध जल से स्नान करवाएं -

स्नान - गंगा च यमुना चैव नर्मदा च सरस्वती। कृष्णा च गौतमी वेणी क्षिप्रा सिन्धुस्तथैव च ॥ तापी च पयोष्णीरेवा च ताभ्यः स्नानार्थमाहृतम् । तोयमेतत्सुखस्पर्शं स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम् ॥ 

 

फिर पञ्चामृत स्नान करवाएं - पहले दूध से स्नान करवाएं।

दूध - गोक्षीरधाम देवेश गोक्षीरेण मया कृतम् । स्नपनं देव देवेश गृहाण मधुसूदन ॥ 

 

दूध चढ़ाने पर शुद्ध जल से स्नान करवाकर दही से स्नान करायें-

दधि - दध्ना चैव मया देव स्नपनं क्रियते तव । गृहाण भक्त्या मया दत्तं सुप्रसन्नो भव अव्यय ॥ 

 

दही चढ़ाने पर शुद्ध जल से स्नान करवाकर घृत से स्नान करवाएं।

घृत - सर्पिषा देव देवेश स्नपनं क्रियते मया । राधा कान्त गृहाणेदं श्रद्धया सुरसत्तम ॥ 

 

घृत स्नान के पश्चात् शुद्ध जल से स्नान करवाकर शहद चढ़ाएं।

शहद - इदं मधु मया दत्तं तव तुष्ट्यर्थमेव च । गृहाण त्वं हि देवेश मम शान्ति प्रदोभव ॥ 

 

शहद चढ़ाकर शुद्ध जल से स्नान कराकर शक्कर चढ़ाएं।

शर्करा - सितया देव देवेश स्नपनं क्रियते मया । गृहाण श्रद्धया दत्तां मम शान्तिप्रदो भव ॥ 

 

शक्कर चढ़ाकर शुद्ध जल से स्नान करवाकर प्रतिमा को या शालिग्राम शिला को पुष्पों पर रखकर पूजन करें ।

 

वस्त्र चढ़ाएं या मौली चढ़ाएं-

सर्व भूषाधिके सौम्ये लोकलज्जा निवारणे । मयोपपादिते तुभ्यं वाससी प्रति गृह्यताम् ॥ 

 

वस्त्र देने के पश्चात् यज्ञोपवीत चढ़ाएं -

यज्ञोपवीत - दामोदर नमस्तेऽस्तु त्राहि मां भव सागरात् । ब्रह्मसूत्रं सोत्तरीयं गृहाण पुरुषोत्तम ॥ 

 

चन्दन चढ़ाएं - श्री खण्डं चन्दनं दिव्यं गन्धाढ्यं सुमनोहरम् । विलेपनं सुरश्रेष्ठ चन्दनं प्रतिगृह्यताम् । 

 

चन्दन चढ़ाने के बाद फूल चढ़ाएं -

पुष्प - माल्यादीनि सुगन्धीनि मालत्यादीनि वै प्रभु । मयाहृतानि पुष्पाणि पूजार्थं प्रतिगृह्यताम् ॥ 

 

तुलसी पत्र लेकर मूर्ति पर चढ़ाएं -

तुलसी - तुलसीं हेमरूपां च रत्नरूपाञ्च मञ्जरीम् । भव मोक्षप्रदां तुभ्यमर्पयमि हरिप्रियाम् ॥ 

 

दूर्वा चढ़ाएं-

दूर्वा - विष्णवादि सर्वदेवानां दूर्वे त्वं प्रीतिदा सदा । क्षीरसागर सम्भूते वंशवृद्धिकरी भव ॥ 

 

इसके पश्चात् आभूषण चढ़ाएं, चाहे पुष्पों से ही क्यों न बने हों -

आभूषण - रत्न कङ्कण वैदूर्य मुक्ता हारादिकानि च । सुप्रसन्नेन मनसा दत्तानि स्वीकुरुष्व भो ॥ 

 

अवीर गुलाल आदि चढ़ाएं-

नाना परिमलैः द्रव्यैः निर्मितं चूर्णमुत्तमम् । अवीर नामकं चूर्णं गन्धं चारु प्रगृह्यताम् ॥

 

धूप अगरवत्ती चढ़ाएं-

धूप -वनस्पति रसोद्भूतो गन्धाढ्यो गन्ध उत्तमः । आघ्रेयः सर्वदेवानां धूपोऽयं प्रतिगृह्यताम् ॥ 

 

दीपक दिखायें-

दीप - साज्यं च वर्तिसंयुक्तं वह्निना योजितं मया। दीपं गृहाण देवेश त्रैलोक्यतिमिरापहम् ॥ 

 

दीपक के पश्चात् सौगी, मिठाई आदि चढ़ाएं-

नैवेद्य - अन्नं चतुर्विधं स्वादु रसैः षड्भिः समन्वितम् । भक्ष्य भोज्य समायुक्तं नैवेद्यं प्रति गृह्यताम् ॥ 

 

नैवेद्य के पश्चात् पीने के लिये जल दें -

एलोशीर लवंगाटि कर्पूर परिवासितम्। प्राशनार्थे कृतं तोयं गृहाण परमेश्वर ॥ 

 

अनेक प्रकार के ऋतुफल चढ़ाएं-

ऋतुफल - बीजपूराम्रमनस खर्जूरी कदली फलम् । नारिकेलफलं दिव्यं गृहाण परमेश्वर ॥ 

 

ऋतुफल चढ़ाने के बाद आचमन के लिये जल दें -

आचमन - कर्पूरवासितं तोयं मन्दाकिन्याः समाहृतम्। आचम्यतां जगन्नाथ मया दत्तं हि त्त्वतः ॥ 

 

ऋतुफल एवं आचमन देने के बाद पान पत्ता चढ़ाएं-

तांबूल - पूगीफलं महद्दिव्यं नागवल्ली दलैः युतम् । कर्पूरादि समायुक्तं ताम्बूलं प्रति गृह्यताम् ॥ 

 

कुछ सिक्के समर्पित करें -

दक्षिणा - हिरण्यगर्भ गर्भस्थं हेमवीजं विभावसोः । अनन्त पुण्य फलदमतः शान्तिं प्रयच्छ मे ॥ 

 

आरती करें - (संपूर्ण रूप से भी आरती कर सकते हैं)

आर्तिक्य - चन्द्रादित्यौ च धरणी विद्युदग्निस्तथैव च । त्वमेव सर्व ज्योतींषी आर्तिक्यं प्रतिगृह्यताम् ॥

 

प्रदक्षिणा करें -

प्रदक्षिणा - यानि कानि च पापानि जन्मान्तरकृतानि च । तानि तानि प्रणश्यन्ति प्रदक्षिण पदे पदे ॥ 

 

साष्टांग नमस्कार करें - (महिलायें पञ्चांग नमस्कार ही करें)

नमस्कार - नमः सर्वहितार्थाय जगदाधार हेतवे । साष्टांगोऽयं प्रणामस्तु प्रणयेन मया कृतः ॥

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महर्षि मार्कंडेय: भक्ति की शक्ति और अमर जीवन

मार्कंडेय का जन्म ऋषि मृकंडु और उनकी पत्नी मरुद्मति के कई वर्षों की तपस्या के बाद हुआ था। लेकिन, उनका जीवन केवल 16 वर्षों के लिए निर्धारित था। उनके 16वें जन्मदिन पर, मृत्यु के देवता यम उनकी आत्मा लेने आए। मार्कंडेय, जो भगवान शिव के परम भक्त थे, शिवलिंग से लिपटकर श्रद्धा से प्रार्थना करने लगे। उनकी भक्ति से प्रभावित होकर भगवान शिव प्रकट हुए और उन्हें अमर जीवन का वरदान दिया, और यम को पराजित किया। यह कहानी भक्ति की शक्ति और भगवान शिव की कृपा को दर्शाती है।

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उपनिषद कहते हैं - एकाकी न रमते स द्वितीयमैच्छत्। एकोऽयं बहु स्यां प्रजायेय। ईश्वर अकेले थे और उनको लगा की अकेले रहना संतुष्टिदायक नहीं है। इसलिए, उन्होंने संगती की कामना की और लोक बनाने का फैसला किया। ऐसा करने के लिए, उन्होंने स्वयं को बढ़ाया और हमारे चारों ओर सब कुछ बन गया। सृष्टि का यह कार्य विविधता और जीवन को अस्तित्व में लाने का ईश्वर का तरीका था। यह व्याख्या हमें याद दिलाती है कि संसार और इसमें विद्यमान हर वस्तु ईश्वर के आनंद की इच्छा की अभिव्यक्ति है। यह सभी प्राणियों की एकता का भी प्रतीक है, क्योंकि हम सभी एक ही दिव्य स्रोत से आए हैं।

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