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गुरुजी की शिक्षाओं में सरलता हैं 🌸 -Ratan Kumar

Hamen isase bahut jankari milti hai aur mujhe mantron ki bhi jankari milti hai -User_spaavj

वेदधारा समाज की बहुत बड़ी सेवा कर रही है 🌈 -वन्दना शर्मा

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वेदधारा की वजह से हमारी संस्कृति फल-फूल रही है 🌸 -हंसिका

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शिव जी का प्रिय मंत्र कौन सा है?

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शिक्षा नामक वेदाङ्ग में क्या बताया गया है ?

हमने देखा है कि ओंकार को प्रणव क्यों कहते हैं। प्रणव दो प्रकार के हैं। यहां स्पष्ट रहिए। ओंकार प्रणव के दो प्रकारों में से एक है। दूसरा है नमः शिवाय। ओंकार और पंचाक्षर दोनों मंत्र प्रणव हैं। दोनों को जापने से एक ही �....

हमने देखा है कि ओंकार को प्रणव क्यों कहते हैं।
प्रणव दो प्रकार के हैं।
यहां स्पष्ट रहिए।
ओंकार प्रणव के दो प्रकारों में से एक है।
दूसरा है नमः शिवाय।
ओंकार और पंचाक्षर दोनों मंत्र प्रणव हैं।
दोनों को जापने से एक ही परिणाम होता है।
लेकिन किसे किसका जाप करना चाहिए, इसमें भेद है।
ओंकार को सूक्ष्म-प्रणव तथा पंचाक्षर मन्त्र को स्थूल-प्रणव कहते हैं।
सबसे पहले, आइए हम सूक्ष्म-प्रणव, ओमकार को देखते हैं।
ओंकार में भी दो भेद हैं।
आम तौर पर हम जो ओंकार सुनते हैं, वह तीन घटकों से- अकार उकार और मकार से बना होता है, जिसे ह्रश्व-प्रणव कहते हैं।
इनके अतिरिक्त जब ओंकार को बिन्दु, नाद, शब्द, काल और कला से युक्त किया जाता है, तो इसे दीर्घ-प्रणव कहते हैं।
यह सूक्षमग्राहिता के ऊपर निर्भर है।
जब मैं संगीत सुनता हूं, तो मैं सिर्फ उसका आनंद लेता हूं।
जब कोई संगीतकार वही संगीत सुनता है, तो वह श्रुति, ताल, स्वर इन सबको भी महसूस करता है।
यह परिष्कृत श्रवण है, सूक्ष्मग्राही श्रवण है।
मेरा सुनना स्थूल है।
उनका श्रवण अधिक परिष्कृत है।
उसी तरह, जब योगी ओंकार का जाप करते हैं तो उन्हें अकार उकार और मकार के अलावा नाद, बिंदु, शब्द, काल और कला का भी भान होता है।
ह्रश्व-प्रणव और दीर्घ-प्रणव में यही अंतर है।
ह्रश्व-प्रणव में अकार शिव है, उकर शक्ति है और मकर शिव-शक्ति का समन्वय है।
ओंकार जीवनमुक्तों के लिए है जिन्होंने सभी सांसारिक इच्छाओं और गतिविधियों को छोड दिया हो।
सन्यासियों के लिए है।
उन्हें अब संसार से कुछ लेना-देना नहीं है।
शरीर जब तक है, तब तक है।
उन्हें शरीर के रख-रखाव या कल्याण की कोई चिंता नहीं है, उनकी कोई आकांक्षा या भावना नहीं है, उनका कोई लक्ष्य भी नहीं है।
उन्होंने परब्रह्म को प्राप्त कर लिया है।
वे बस इंतजार कर रहे हैं कि शरीर का पात हो जाए और पूरी तरह से भगवान शिव में विलीन हो जाए।
यह कोई बेचैन प्रतीक्षा भी नहीं है।
आप तभी बेचैन होंगे जब आप जल्द से जल्द कुछ पाना चाहते हैं।
यहां कोई बेचैनी नहीं है।
इस अवस्था में भी वे ओंकार, सूक्ष्म प्रणव का जाप करते रहते हैं।
योग की स्थिति, भगवान शिव के साथ मिलन तब होता है जब आप ओंकार का ३६ करोद बार जाप करते से योग की अवस्था, भगवान शंकर का साक्षात्कार होता है।
अब पंचाक्षर-प्रणव।
नमः शिवाय में जो पांच अक्षर हैं वे पंच भूत और पंच इंद्रिय हैं।
यदि आप अभी भी कोई भौतिक वस्तु प्राप्त करना चाहते हैं, एक घर, एक कार, एक आरामदायक बिस्तर, स्वादिष्ट भोजन, स्वास्थ्य, धन कुछ भी जो पंच भूतों से बना है तो आपको पंचाक्षर-मंत्र का जाप करना चाहिए ओंकार का नहीं।
यदि आपकी आँखें अभी भी सुंदर वस्तुओं और दृश्यों को देखने के लिए तरसती हैं, यदि आपके कान अभी भी मीठी आवाज़ सुनने के लिए तरसते हैं, यदि आपकी नाक अभी भी सुगंध का आनंद लेती है, यदि आपकी जीभ अभी भी स्वादिष्ट भोजन को पहचानती है और उसके लिए तरसती है, यदि आपकी त्वचा अभी भी सुखदायक स्पर्श का आनंद लेती है, जैसे एक नरम बिस्तर, तो आपको पंचाक्षर-मंत्र का जाप करना चाहिए ओंकार का नहीं।
पंचाक्षर में भी जैसा कि हमने पहले देखा है नमः शिवाय तपस्वियों के लिए है, आम आदमी के लिए यह है शिवाय नमः।
शिवाय नमः से शुरू करें। बाद में नमः शिवाय। और आगे बढने से ॐ नमः शिवाय, फिर ह्रस्व ओंकार, फिर दीर्घ ओंकार- यह है क्रम।
ह्रस्व और दीर्घ ओंकार के बीच भी, यदि आपके पास अभी भी कोई लक्ष्य है, आप कुछ हासिल करना चाहते हैं, तो ह्रश्व ओंकार का जाप करें।
दीर्घा ओंकार उनके लिए जिनका भगवान शंकर के साथ सायुज्य हो चुका है। जिनका और कोई लक्ष्य ही नहीं बचा है। जिनको और कहीं जाना ही नहीं है।
ह्रस्वमेव प्रवृत्तानां निवृत्तानां तु दीर्घकम्
आमतौर पर वेदों के जाप से पहले और मंत्रों की शुरुआत में ओंकार का उच्चार होता है।
यदि आप प्रणव का जाप करते हैं, चाहे ओंकार हो या पंचाक्षर, यदि आप नौ करोड़ बार जाप करने पर आप पवित्र हो जाएंगे।
एक और ९ करोड़, आप पृथ्वी तत्व, भूमि तत्व को नियंत्रित कर पाएंगे।
जो कुछ ठोस है वह आपके वश में आ जाएगा।
एक पत्थर है, सिर्फ सोच से आप उसे हिला डुला पाएंगे।
एक और नौ करोड़, आप जल तत्व को नियंत्रित कर पाएंगे।
आप किसी नदी के पथ को बदल पाएंगे। जब चाहेंग बारिश होगी। जब चाहेंगे बारिश रुकेगी।
एक और नौ करोड़ आप तूफान को बना पाएंगे रोक पाएंगे, वायु तत्व को नियंत्रित कर पाएंगे
एक और नौ करोड़ आप सिर्फ सोचने से कहीं भी आग लगा पाएंगे, किसी भी आग को बुछा पाएंगे।
एक और नौ करोड़, आकाश तत्व को नियंत्रित कर पाएंगे।
अगले पांच नौ नौ करोड़ जाप से शब्द-स्पर्श-रूप-रस-गंध इनको नियंत्रित कर पाएंगे
एक और नौ करोड़ अहंकार को नियंत्रित कर पाएंगे।
तो कुल मिलाकर १०८ करोड़ प्रणव का जाप आपको योग की अवस्था में ले जाएगा।
भगवान के साथ सायुज्य को प्राप्त कराएगा।
आप सांसारिक जीवन से पूरी तरह मुक्त हो जाएंगे।
जाप का अर्थ है दीक्षा, मंत्र-संस्कार, षडध्व-शोधन, न्यास इन सबके साथ।
तभी लाभ होगा।
संक्षेप में, यदि आप अभी भी संसार में हैं, या कहीं बीच में, संसार में कुछ समय, कुछ समय आध्यात्म में , तो पंचाक्षर ही आपके लिए सही है।
प्रवृत्तानां च मिश्राणां स्थूलप्रणवमिष्यते।

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