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आपकी वेबसाइट ज्ञान और जानकारी का भंडार है।📒📒 -अभिनव जोशी

आपके प्रवचन हमेशा सही दिशा दिखाते हैं। 👍 -स्नेहा राकेश

वेदधारा की धर्मार्थ गतिविधियों का हिस्सा बनकर खुश हूं 😇😇😇 -प्रगति जैन

वेदधारा सनातन संस्कृति और सभ्यता की पहचान है जिससे अपनी संस्कृति समझने में मदद मिल रही है सनातन धर्म आगे बढ़ रहा है आपका बहुत बहुत धन्यवाद 🙏 -राकेश नारायण

बहुत अच्छी अच्छी जानकारी प्राप्त होती है 🙏🌹🙏 -Manjulata srivastava

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जानिए ॐ को प्रणव क्यों कहते हैं - शिव पुराण के अनुसार

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मृत्युञ्जय मंत्र का अर्थ

तीन नेत्रों वाले शंकर जी, जिनकी महिमा का सुगन्ध चारों ओर फैला हुआ है, जो सबके पोषक हैं, उनकी हम पूजा करते हैं। वे हमें परेशानियों और मृत्यु से इस प्रकार सहज रूप से मोचित करें जैसे खरबूजा पक जाने पर बेल से अपने आप टूट जाता है। किंतु वे हमें मोक्ष रूपी सद्गाति से न छुडावें।

रुद्राक्ष सिद्धि मंत्र

ॐ रोहणी रुद्राक्षी मनकरिन्द्री नमः । रुद्राक्षीयायां गंड संसारं पारवितं फूल माला जडयायामी जयमीस्यामी जमीस्यामी प्रलानी प्रलानी नमः । रुद्राक्षी बुटी सफलं करीयामी मूर मूरगामी यशस्वी स्वः । ज्या बूटी मोरी वाणी बुंटी दामिनी दामिमि स्वः । रमणी रमणी नमः नमः । इस मंत्र से रुद्राक्ष अभिमंत्रित करने से वह सिद्ध हो जाता है ।

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पंचवटी कहां स्थित है ?

ओंकार को प्रणव क्यों कहते हैं? शिव पुराण के अनुसार इसके कई कारण हैं। प्रणव में तीन अक्षर हैं। प्र - ण - वः इसमें णकार वास्तव में नकार है। संस्कृत व्याकरण के नियमों के अनुसार यदि रेफ या ऋकार या षकार नकार से पहले आता है त�....

ओंकार को प्रणव क्यों कहते हैं?
शिव पुराण के अनुसार इसके कई कारण हैं।
प्रणव में तीन अक्षर हैं।
प्र - ण - वः
इसमें णकार वास्तव में नकार है।
संस्कृत व्याकरण के नियमों के अनुसार यदि रेफ या
ऋकार या षकार नकार से पहले आता है तो नकार णकार बन जाता है
यहां देखिए प्र का रेफ र नकार से पहले होने से नकार णकार बन गया।
प्र-न-वः

प्रो हि प्रकृतिजातस्य संसारस्य महोदधेः
नवं नावान्तरमिति प्रणवं वै विदुर्बुधाः
प्र का अर्थ है प्रकृति, जो एक बड़ा महासागर है, जिसे पार करना बहुत मुश्किल है।
संसार की मजबूरियों और दबावों को पार करना बहुत मुश्किल है।
लेकिन इसके लिए प्रणव एक दूसरी नाव बनकर आया है ।
दूसरी इसलिए कि और भी मार्ग हैं
नवं नावान्तरम्

जो आपको संसार सागर के पार ले जाएगा।
एक और व्याख्या।

प्रा का अर्थ है प्रपंच, संसार।
न का अर्थ है नहीं।
वः का अर्थ है आपके लिए
यदि आप प्रणव का जप करते हैं, तो आपके लिए कोई संसार नहीं है।
प्रः प्रपञ्चो न नास्ति वो युष्माकं प्रणवं विदुः
एक और व्याख्या।
प्रकर्षेण नयेद्यस्मान्मोक्षं वः प्रणवं विदुः
प्रकर्षेण नयेत् वः
प्रणव आपको मोक्ष की ओर ले जाता है।
श्रेष्ठ और बलवान तरीके से ।

स्वमन्त्रजापकानां च पूजकानां च योगिनाम्
सर्वकर्मक्षयं कृत्वा दिव्यज्ञानं तु नूतनम्
तमेव मायारहितं नूतनं परिचक्षते
प्रकर्षेण महात्मानं नवं शुद्धस्वरूपम्
नूतनं वै करोतीति प्रणवं तं विदुर्बुधाः
यदि आप प्रणव का जप करते हैं, तो आपके सभी पिछले कर्म समाप्त हो जाएंगे।
जब ऐसा होगा तो नया ज्ञान का, वास्तविक ज्ञान का आपके मन में उदय होगा।
ज्ञान प्राप्त करने में बाधा, आपके ही स्वयं के पिछले कर्म हैं।
प्रणव का जप करने से उस कर्म का क्षय हो जाएगा।
सदा नव सदा ताजा कौन हैं? है, भगवान, भगवान शिव।
प्रणव के जाप के द्वारा आप उन तक पहुंच सकते हैं।
प्रणव का जाप आपको महेश्वर के रूप में बदल देगा।
महादेव के समान पवित्र कर देगा ।
प्रणव का जप आपको इस हद तक शुद्ध कर देगा कि आप स्वयं महादेव बन जाएंगे ।

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