काली घाटे । काली माँ । पतित पावनी । काली माँ । जवा फूले । स्थुरी जले । सेई जवा फूल । में सिआ बेड़ाए । देवीर अनुर्बले । एहि होत । करिवजा होइवे । ताहा काली धर्मेर । चले काहार । आज्ञे राठे । काली का । चंडीर आसे ।
ग्रहण काल में अनगिनत जप करने से यह मंत्र सिद्ध होता है । किसी भी कार्य की सिद्धि के लिए, इस मंत्र का सात बार जप करके दायें हाथ पर फूंक मारें, फिर कार्य करें ।
दुर्दम विश्वावसु नामक गंधर्व का पुत्र था। एक बार वे अपनी हजारों पत्नियों के साथ कैलास के निकट एक झील में विहार कर रहे थे। वहाँ तप कर रहे ऋषि वसिष्ठ ने क्रोधित होकर उन्हें श्राप दे दिया। परिणामस्वरूप, वह राक्षस बन गया। उनकी पत्नियों ने वशिष्ठ से दया की याचना की। वसिष्ठ ने कहा कि भगवान विष्णु की कृपा से 17 वर्ष बाद दुर्दामा पुनः गंधर्व बन जाएगा। बाद में, जब दुर्दामा गालव मुनि को निगलने की कोशिश कर रहा था, तो भगवान विष्णु ने उसका सिर काट दिया और वह अपने मूल रूप में वापस आ गया। कहानी का सार यह है कि कार्यों के परिणाम होते हैं, लेकिन करुणा और दैवीय कृपा से मुक्ति संभव है।
अन्नं प्रजापतिश्चोक्तः स च संवत्सरो मतः। संवत्सरस्तु यज्ञोऽसौ सर्वं यज्ञे प्रतिष्ठितम्॥ तस्मात् सर्वाणि भूतानि स्थावराणि चराणि च। तस्मादन्नं विषिष्टं हि सर्वेभ्य इति विश्रुतम्॥
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