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वेदधारा की वजह से हमारी संस्कृति फल-फूल रही है 🌸 -हंसिका

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वेदधारा से जब से में जुड़ा हूं मुझे अपने जीवन में बहुत कुछ सीखने को मिला वेदधारा के विचारों के माध्यम से हिंदू समाज के सभी लोगों को प्रेरणा लेनी चाहिए। -नवेंदु चंद्र पनेरु

वेदधारा के माध्यम से हिंदू धर्म के भविष्य को संरक्षित करने के लिए आपका समर्पण वास्तव में सराहनीय है -अभिषेक सोलंकी

आपकी वेवसाइट अदभुत हे, आपकी वेवसाइट से असीम ज्ञान की प्राप्ति होती है, आपका धर्म और ज्ञान के प्रति ये कार्य सराहनीय, और वंदनीय है, आपको कोटि कोटि नमन🙏🙏🙏🙏 -sonu hada

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जब गरुड अमृत के लिए स्वर्ग के ऊपर आक्रमण करने आ रहे थे तो बृहस्पति ने इन्द्र से कहा था कि - यह तुम्हारी वजह से हो रहा है । तुम्हारी घमंड इसके पीछे है ।
कश्यप के पुत्र गरुड के जन्म के पीछे वालखिल्य महर्षियों की तप शक्ति है । इन्द्र ने उनका अपमान किया था ।
आइए जरा इसके बारे में देखते हैं ।
कश्यप प्रजापति प्रजोत्पत्ति के लिए यज्ञ कर रहे थे ।
ऐसा नहीं है कि उनको बच्चा नहीं था इसलिए कुछ प्रायश्चित्त कर रहे थे ।
प्रजापति यज्ञ के माध्यम से ही प्रजोत्पत्ति करते हैं । सृजन करते हैं ।
बहुत बडा यज्ञ था यह ।
देवता, ऋषि सब उनकी मदद कर रहे थे ।
यज्ञ के लिए ईंधन की लकडी लाने का काम इन्द्रदेव को सौंपा गया । साथ ही साथ वालखिल्यों को भी ।
वालखिल्य बहुत ही नन्हे से होते हैं ।
उनकी ऊंचाई अंगूठे के बराबर है ।
वे कभी भोजन नहीं करते थे ।
सूर्य की किरणों से जितनी ऊर्जा चाहिए उसे पाते थे ।
उनमे शारीरिक शक्ति नहीं थी ।
सिर्फ तप शक्ति थी ।
एक छोटे पोखरे को भी लांघना उनके लिए बडा कठिन कार्य था ।
तब भी वे यज्ञ में सहयोग दे रहे थे ।
सबने मिलकर एक छोटी सी समिधा को किसी भी प्रकार उठाकर ले आ रहे थे ।
इन्द्र बडे बलवान थे ।
एक पहाड के बराबर लकडियों के गट्ठे को लेकर आ रहे थे ।
रास्ते में इन्द्र को वालखिल्य दिखाई दिये ।
एक छोटी समिधा को लेकर हाथ पैर मारते हुए वालखिल्यों को इन्द्र जोर जोर से हसे ।
उनकी हंसी उडायी इन्द्र देव ने ।
वालखिल्य गुस्से में आ गये ।
बोले इसका घमंड उतार देते हैं ।
उन्होंने एक यज्ञ शुरू किया दूसरे इन्द्र को बनाने ।
बडे तापस हैं वालखिल्य । कुछ भी कर सकते हैं ।
जब इन्द्र को इसके बारे में पता चला तो इन्द्र दौडते दौडते अपने पिताजी कश्यप प्रजापति के पास गये ।
कश्यपजी ने वालखिल्यों से पूछा - हां सही है, उसने हमारा उपहास किया है ।
हम उससे भी बलवान दूसरे इन्द्र को बनाएंगे ।
हमारे इन्द्र से यह डरेगा ।
कश्यपजी बोले - क्षमा कर दीजिए इन्द्र को ।
जो कुछ भी हुआ इन्द्र उसके लिए शर्मिन्दा है ।
उसे क्षमा कर दीजिए ।
देवराज के रूप मे ब्रह्माजी ने ही इन्द्र को प्रतिष्ठा दिया है ।
आप लोग दूसरे इन्द्र को लाएंगे तो वह ब्रह्माजी की इच्छा का विरुद्ध हो जाएगा ।
ऐसा मत कीजिए ।
पर आपने जो कुछ भी प्रयास किया है व्ह भी व्यर्थ नहीं जाना चाहिए ।

इसलिए नये इन्द्र को पक्षियों का इन्द्र बनाइए ।
वालखिल्यों ने कहा - ठीक है जो भी है हमारे यज्ञ का फल हम आपको सौंप देते हैं ।
आपको जो सही लगे वैसा कीजिए ।

इस तप शक्ति को वालखिल्यों के यज्ञ के फल को ही कश्यपजी ने विनता मे सन्निवेश करके अरुण और गरुड को जन्म दिया ।
दोनों ही मिलकर पक्षियों के राजा बने ।
कश्यपजी ने इन्द्र से कहा - तुम इनसे मत डरो । ये तुम्हारे हितैषी रहेंगे ।
पर आगे कभी भी मंत्रवेत्ता तापसों का उपहास नहीं करना ।
उनकी वाणि वज्रायुध के समान है । और वे बहुत जल्दी कुपित भी हो जाते हैं ।

यह है गरुड और अरुण के जन्म के पीछे की कहानी ।

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