तीन नेत्रों वाले शंकर जी, जिनकी महिमा का सुगन्ध चारों ओर फैला हुआ है, जो सबके पोषक हैं, उनकी हम पूजा करते हैं। वे हमें परेशानियों और मृत्यु से इस प्रकार सहज रूप से मोचित करें जैसे खरबूजा पक जाने पर बेल से अपने आप टूट जाता है। किंतु वे हमें मोक्ष रूपी सद्गाति से न छुडावें।
देवकार्यादपि सदा पितृकार्यं विशिष्यते । देवताभ्यो हि पूर्वं पितॄणामाप्यायनं वरम्॥ (हेमाद्रिमें वायु तथा ब्रह्मवैवर्तका वचन) - देवकार्य की अपेक्षा पितृकार्य की विशेषता मानी गयी है। अतः देवकार्य से पूर्व पितरों को तृप्त करना चाहिये।
देव, दैत्य और दानवों की उत्पत्ति
महाभारत के अनुसार ब्रह्मा जी के मानस पुत्र हैं मरीचि, अत्�....
Click here to know more..पृथिव्यां त्रीणि रत्नानि
इस भूलोक पर तीन ही चीज रत्न कहलाते हैं| पहला है पानी, दूसरा ....
Click here to know more..गणेश षोडश नाम स्तोत्र
सुमुखश्चैकदन्तश्च कपिलो गजकर्णकः। लम्बोदरश्च विकटो वि�....
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