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आपके प्रवचन हमेशा सही दिशा दिखाते हैं। 👍 -स्नेहा राकेश

वेदधारा से जब से में जुड़ा हूं मुझे अपने जीवन में बहुत कुछ सीखने को मिला वेदधारा के विचारों के माध्यम से हिंदू समाज के सभी लोगों को प्रेरणा लेनी चाहिए। -नवेंदु चंद्र पनेरु

वेद पाठशालाओं और गौशालाओं के लिए आप जो कार्य कर रहे हैं उसे देखकर प्रसन्नता हुई। यह सभी के लिए प्रेरणा है....🙏🙏🙏🙏 -वर्षिणी

आप लोग वैदिक गुरुकुलों का समर्थन करके हिंदू धर्म के पुनरुद्धार के लिए महान कार्य कर रहे हैं -साहिल वर्मा

😊😊😊 -Abhijeet Pawaskar

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 एक नगर में एक प्रसिद्ध वैद्य रहा करता था। 

उसने काफी पैसा भी कमा लिया था। 

एक दिन कुछ मित्र उसकी प्रशंसा करने लगे तब उसने उनसे कहा - 'क्या मैं एक रहस्य तुम्हें बताऊँ? सच कहा जाय तो मैं अधम वैद्य हूं ।

मित्रों को आश्चर्य  हुआ।  

’यह कभी सच नहीं हो सकता ।’ 

’इस बात पर इस शहर में किसी को विश्वास न होगा।' - उन्होंने कहा ।

’पर है यह सच ही !' 

'सुनिये ! हम तीन भाई हैं और तीनों वैद्य हैं।’

’हमारा बड़ा भाई उत्तम वैद्य है।’

’वह आनेवाले रोगों को पहिले ही जान लेता है ।’

’आहार में परिवर्तन करके वह रोग को आने से रोक देता है ।’ 

’लोग यह भी नहीं जानते कि वह वैद्य है।’ 

’हमारा दूसरा भाई मध्यम श्रेणी का वैद्य है।’ 

’वह रोग को शुरू में ताड लेता है और तभी उसको निर्मूल कर देता है ।’ 

’इसलिए लोग जान गये कि वह छोटी-मोटी बीमारियों का इलाज कर सकता है।’ 

’और मैं अधम श्रेणी का वैद्य हैं ।’ 

’ रोग जब तक बढ़ नहीं जाता तब तक में उसे हटा नहीं पाता ।’ 

’उसके बाद दुनियाँ भर के कषाय, चूर्ण देकर, रोग से युद्ध करके जीतता हूँ ।’ 

’और रोग यदि दवाइयों के बस न आया तो उसकी शल्य-चिकित्सा भी करता हूँ ।’ 

’इसलिए ही लोग मुझे बड़ा वैद्य कहते हैं।'

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हिंदू धर्म में आरती क्या है?

आरती करने के तीन उद्देश्य हैं। १. नीरांजन - देवता के अङ्ग-प्रत्यङ्ग चमक उठें ताकि भक्त उनके स्वरूप को अच्छी तरह समझकर अपने हृदय में बैठा सकें। २. कष्ट निवारण - पूजा के समय देवता का भव्य स्वरूप को देखकर उनके ऊपर भक्तों की ही नज़र पड सकती है। छोटे बच्चों की माताएँ जैसे नज़र उतारती हैं, ठीक वैसे ही आरती द्वारा देवता के लिए नज़र उतारी जाती है। ३, त्रुटि निवारण - पूजा में अगर कोई त्रुटि रह गई हो तो आरती से उसका निवारण हो जाता है।

रावण ने नौ सिरों की बलि दी

वैश्रवण (कुबेर) ने घोर तपस्या करके लोकपाल और पुष्पक विमान में से एक का पद प्राप्त किया। अपने पिता विश्रवा की आज्ञा का पालन करते हुए उन्होंने लंका में निवास किया। कुबेर की महिमा को देखकर विश्रवा की दूसरी पत्नी कैकसी ने अपने पुत्र रावण को भी ऐसी ही महानता हासिल करने के लिए प्रोत्साहित किया। अपनी माँ से प्रेरित होकर रावण अपने भाइयों कुम्भकर्ण और विभीषण के साथ घोर तपस्या करने के लिए गोकर्ण गया। रावण ने यह घोर तपस्या 10,000 वर्ष तक की। प्रत्येक हजार वर्ष के अंत में, वह अपना एक सिर अग्नि में बलि के रूप में चढ़ाता था। उसने ऐसा नौ हजार वर्षों तक किया, और अपने नौ सिरों का बलिदान दिया। दसवें हजार वर्ष में, जब वह अपना अंतिम सिर चढ़ाने वाला था, रावण की तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्मा प्रकट हुए। ब्रह्मा ने उसे देवताओं, राक्षसों और अन्य दिव्य प्राणियों के लिए अजेय बनाने का वरदान दिया, और उसके नौ बलिदान किए गए सिरों को बहाल कर दिया, इस प्रकार उसे दस सिर दिए गए।

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राजस्थान के इस लोक देवता को हिन्दू भक्त कृष्ण के अवतार के रूप में और मुसलमान रामसा पीर के रूप में मानते हैं । कौन है यह ?

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