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Hamen isase bahut jankari milti hai aur mujhe mantron ki bhi jankari milti hai -User_spaavj

Yeah website hamare liye to bahut acchi hai Sanatan Dharm ke liye ek Dharm ka kam kar rahi hai -User_sn0rcv

वेदधारा की वजह से मेरे जीवन में भारी परिवर्तन और सकारात्मकता आई है। दिल से धन्यवाद! 🙏🏻 -Tanay Bhattacharya

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गोवत्स द्वादशी की कहानी क्या है?

एक बार माता पार्वती गौ माता के और भोलेनाथ एक बूढे के रूप में भृगु महर्षि के आश्रम पहुंचे। गाय और बछडे को आश्रम में छोडकर महादेव निकल पडे। थोडी देर बाद भोलेनाथ खुद एक वाघ के रूप में आकर उन्हें डराने लगे। डर से गौ और बछडा कूद कूद कर दौडे तो उनके खुरों का निशान शिला के ऊपर पड गया जो आज भी ढुंढागिरि में दिखाई देता है। आश्रम में ब्रह्मा जी का दिया हुआ एक घंटा था जिसे बजाने पर भगवान परिवार के साथ प्रकट हो गए। इस दिन को गोवत्स द्वादशी के रूप में मनाते हैं।

रेवती नक्षत्र का मंत्र क्या है?

पूषा रेवत्यन्वेति पन्थाम्। पुष्टिपती पशुपा वाजवस्त्यौ। इमानि हव्या प्रयता जुषाणा। सुगैर्नो यानैरुपयातां यज्ञम्। क्षुद्रान्पशून्रक्षतु रेवती नः। गावो नो अश्वां अन्वेतु पूषा। अन्नं रक्षन्तौ बहुधा विरूपम्। वाजं सनुतां यजमानाय यज्ञम्। (तै.ब्रा.३.१.२)

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वाल्मीकि रामायण किस छंद में है ?

हमारे पास कठोपनिषद मुण्डकोपनिषद जैसे श्रुत्युपनिषद भी हैं गीता रूपी स्मृत्युपनिषद भी है। इन दोनों में क्या भेद है, आइए जरा समझते हैं। श्रुत्युपनिषदों मन्त्रवाक् है। गीता में शब्दवाक् है। दोनों ही रहस्यमयी वाक् है।....

हमारे पास कठोपनिषद मुण्डकोपनिषद जैसे श्रुत्युपनिषद भी हैं गीता रूपी स्मृत्युपनिषद भी है।
इन दोनों में क्या भेद है, आइए जरा समझते हैं।
श्रुत्युपनिषदों मन्त्रवाक् है।
गीता में शब्दवाक् है।
दोनों ही रहस्यमयी वाक् है।
जब ऋषि जन कठोर तपस्या द्वारा अपने मन को पवित्र कर देते हैं तो उसमें मन्त्र का उदय होता है।
मन्त्र अपने आप में ईश्वरीय शक्ति है, ईश्वरीय स्पन्दन है।
मन्त्र में न कुछ जुड सकता है, न कुछ घट सकता है, न कुछ बदल सकता है।
मन्त्र छन्दोबद्ध है।
मन्त्र में उस मन्त्र की देवता स्पन्दन के रूप में रहता है।
मन्त्र में अक्षर भी है और उसके उच्चार में उदात्तादि स्वर भी लगते हैं।
अक्षर में या स्वर में जरा भी त्रुटि हुई तो उस देवता का स्वरूप भी शायद हानिकारक बन सकता है।
लाभ के बदले में मन्त्र जाप का परिणाम विनाश भी हो सकता है।
क्यों कि मन्त्र विज्ञान है।
मन्त्र एक शक्ति है।
आप बिजली को सही ढंग से इस्तेमाल नहीं करेंगे तो झटका लग सकता है।
बिजली बहुत फायदेमंद है, पर बिजली के झटके से कई लोग मरते भी हैं।
दुष्टः शब्द: स्वरतो वर्णतो वा मिथ्याप्रयुक्तो न तमर्थमाह।
स वाग्वज्रो यजमानं हिनस्ति यथेन्द्रशत्रुः स्वरतोऽपराधात्॥
मन्त्रों में वर्ण का स्वर का दोष लग जाने में या आप उस प्रसंग के लिए अनुचित मन्त्र का प्रयोग कर रहे हो, इस सब कारणों मन्त्र वज्रायुध बनकर जप करनेवाले का सर्वनाश भि कर सकते हैं।
मन्त्र में किसी विशेष छ्न्द के अनुसार शब्द वीचियों का स्पन्दन हैं।
जैसे गायत्री मन्त्र को लीजिए, उसका देवता सूर्य हैं।
गायत्री मंत्र का जो छन्द है जिसका नाम भी गायत्री है, उस छन्द के स्पन्द सूर्य के स्वरूप के हैं।
जब आप गायत्री का जाप करते रहेंगे तो समानाकर्षण तत्त्व के अनुसार सूर्य देवता आपके पास आकर आपकी आत्मा में सन्निवेश हो जाएंगे।
जितना ज्यादा करेंगे उतना आप में सूर्य के गुण बढते जाएंगे।
इसीलिए मन्त्र का जाप लाखों में करना पडता है, तभी उसका गुण मिलता है।
लेकिन जो जाप आप करते हैं उसमें एक वर्ण गलत हो गया या एक स्वर गलत हो गया तो सूर्य के बदले कोई और देवता आपके द्वारा आप के द्वारा आकर्षित होगा और उस देवता का आप में सन्निवेश होगा।
हमें पता नहीं उस देवता के क्या गुण रहेंगे या क्या स्वभाव रहेगा।
खाना पकाते समय, सही पकाओ तो खाना स्वादिष्ठ बनेगा, थोडा ज्यादा वक्त चूल्हे के ऊपर रहा तो खाना जल जाएगा।
मन्त्र ऊर्जा है, उसका प्रयोग बहुत सावधानी से करना है।
वेद मन्त्रों का व्याकरण सामान्य संस्कृत व्याकरण जैसा नही है।
वेद के मन्त्र जैसा प्रपञ्च में कोई तत्त्व ठीक उसकी प्रतिकृति है।
जैसे अग्नि के बीज मन्त्र को लीजिए-रं-इसका अपने आप में कोई अर्थ या व्याकरण नहीं है।
पर इसका जाप करो, अग्नि अपने आप में प्रज्वलित होगी।
यह बीज मन्त्र अग्नि के सान्निध्य को लाएगा।

गीतोपनिषद में मन्त्रवाक् नहीं शब्दवाक् है।
गीता में मन्त्र नहीं श्लोक हैं।
गीता के श्लोकों का स्पन्द नहीं अर्थ प्रधान है।
गीता के श्लोक अर्थ जानने के लिए है, जाप या पारायण के लिए नहीं है।
ऐसा नहीं कि पारायण करो्गे तो बिलकुल फायदा नहीं मिलेगा।
लेकिन गीता का उद्देश्य वह नहीं है।
अर्थ जाने बिना भी मन्त्रों के जाप से लाभ मिलेगा।
मन्त्रों के उच्चार में ही फल है, अर्थ जानो या न जानो।
गीता अर्थ को जानकर उसे अपने जीवन मे साक्षात्कार करने के लिए है।
हां जब तक गीता आपके अन्दर शब्द के रूप में प्रतिष्ठित नहीं है तो अर्थ जान नहीं पाएंगे।
इसके लिए पारायण करो कंठस्थ करो। कोई बात नहीं।
पर ध्यान गीता के अर्थ की ओर होना चाहिए।

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