पुराणशास्त्र के चार कल्प हैं: १. वैदिक कल्प २. वेदव्यासीय कल्प ३. लोमहर्षणीय कल्प ४. औग्रश्रवस कल्प
इतिहास और पुराणों का आपसी संबंध अटूट है, जहां इतिहास (रामायण और महाभारत) ऐतिहासिक कथाओं की आत्मा का प्रतिनिधित्व करते हैं और पुराण उनका शरीर बनाते हैं। बिना पुराणों के, इतिहास की सार्थकता इतनी जीवंत रूप में स्मरण नहीं की जा सकती। पुराण एक व्यापक सूचकांक के रूप में कार्य करते हैं, जो ब्रह्मांड की सृष्टि, देवताओं और राजाओं की वंशावली, और नैतिक शिक्षाओं को समाहित करते हुए अमूल्य कथाओं को संरक्षित करते हैं। वे सृष्टि के गहन विश्लेषण में जाते हैं, ऐसी अंतर्दृष्टि प्रदान करते हैं जो समकालीन वैज्ञानिक सिद्धांतों, जैसे विकासवाद, के साथ प्रतिस्पर्धा करती हैं और अक्सर उन्हें चुनौती देती हैं।
हनुमान जी की कृपा के लिए मंत्र
आञ्जनेयाय विद्महे रामदूताय धीमहि तन्नो हनुमत्प्रचोदया�....
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रामो दाशरथिः सीतानायको लक्ष्मणाग्रजः । दशग्रीवहरश्चैव ....
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