जमवाई माता का मंदिर राजस्थान की राजधानी जयपुर से ३५ कि.मी. पूर्व में जमवा - रामगढ़ की पहाड़ियों की घाटी में स्थित है। यह रामगढ झील से १ कि.मी. दूरी पर है।
जमवाय मंदिर की स्थापना कछवाहा वंश के शासक दुल्हेराय ने सन १०९३ और ११२३ के बीच की थी।
दुल्हेराय मध्यप्रदेश के नरवर के शासक सोढदेव के पुत्र थे। उनका विवाह दौसा के पास मोरां के शासक रालण सिंह चौहान की पुत्री के साथ हुआ था। दौसा पर उस वक्त रालण सिंह चौहान और बड़गुजर क्षत्रियों का आधा आधा राज्य था। बड़गुजर रालण सिंह को बहुत तंग करते थे। रालण सिंह ने दुल्हेराय की सहायता से बड़गुजरों को हरा दिया। दुल्हेराय दौसा का शासक बन गया। दुल्हेराय ने भांडारेज के मीणा शासकों को भी हराया। इसके बाद दुल्हेराय ने मांच पर आक्रमण किया। युद्ध में दुल्हेराय गंभीर रूप से घायल हो गया। उन्हें मरा हुआ समझकर मांच के मीणाओं ने युद्ध भूमि में ही छोडकर चले गये। वहीं पर जमवाय माता ने उन्हें दर्शन दिया और आशीर्वाद दिया। दुल्हेराय उठ खडे हो गये और मीणाओं को हराकर मांच पर भी अपना अधिकार कर लिया।
बुढवाय माता दुल्हेराय की कुलदेवी थी। मांच पर अपना अधिकार स्थापित करने के बाद दुल्हेराय मांच का नाम अपने पूर्वज राम व देवी जमवाय के नाम पर जमवा - रामगढ़ रख दिया। अपनी कुलदेवी बुढवाय माता की मूर्ति नरवर से लाकर उन्होंने यहां स्थापित की। दुल्हेराय के वंशजों ने समय समय पर इस मंदिर का विकास किया।
कछवाहा वंशज यहां अपनी कुलदेवी के पास जन्म, शादी, पगड़ी दस्तूर के बाद जात देने आते हैं। ये अपने शौर्य, साहस, निडरता और जीवन में सफलता को जमवाय माता का आशीर्वाद ही मानते हैं। यहां देवी का सात्विक रूप है।
जमवा - रामगढ के अलावा भौडकी, जिला झुंझनु; महरोली एवं मदनी मंढा, जिला सीकर; भूणास, जिला नागौर पर भी जमवाय माता के मंदिर हैं।
जमवाय माता पहले बुढवाय माता कहलाती थी। दुल्हेराय का राजस्थान आने के बाद ही इनका नाम जमवाय माता हुआ।
जमवाई माता कछवाहा वंश की कुलदेवी है। कछवाहा वंश राजपूतों की एक उपजाति और सूर्यवंशी है।