नैमिषारण्य में ऋषि जन सूत से दो सवाल पूछ चुके हैं।
सबसे श्रेयस्कर क्या है, सब्से श्रेष्ठ लक्ष्य क्या है, और इसे कलियुग में पाने के लिए साधन क्या है?
अब तीसरा सवाल -
सूत जानासि भद्रं ते भगवान्
देवक्यां वसुदेवस्य जातो यस्य चिकीर्षया॥
क्या आपको पता है भगवान ने वसुदेव और देवकी का पुत्र बनकर ज्न्म लिया है ?
यह कुछ लोगों को ही पता है।
बहुत कम लोगों को ही पता है।
उस समय का एक रहस्य था यह।
इस सवाल को सुनने के बाद सूत के चेहरे पर प्रसन्नता देखकर उन्होंने अनुमान किया कि हां सूत को पता है।
बोले - भद्रं ते अस्तु।
एक आशीर्वाद दे दिया।
यह आशिर्वाद कथा सुनने से पहले ही दक्षिणा के रूप में उन्होंने दे दिया।
पर ऋषि जन विस्मय मे थे।
भगवान ने ऐसे क्यों किया?
भगवान अब क्यों आये हैं धर्ती पर?
वह भी एक साधारण स्त्री के गर्भ से।
भगवान तो सात्वतों के पति हैं,स्वामी हैं।
कौन हैं सात्वत?
जीवन्मुक्त, सनकादि कुमार, नारद जैसे जीवन्मुक्त।
उन्होंने कभी किसी नारी के कोख से जन्म नहीं लिया है।
वे सब ब्रह्मा जी के शरीर से आविर्भूत होते हैं।
उनके भी स्वामी ने ऐसा निर्णय क्यों लिया कि मैं एक नारी के गर्भ से जन्म लूं ?
स्त्री - पुरुष के शारीरिक मिलन को हेतु बनाकर जन्म लूं?
यह तो जानवरों में भी होता है
यह कोई श्रेष्ठ जन्म नहीं लगता है, यह तो बहुत ही साधारण है, जो करोडों करोडों में होता रहता है
चलो मान भी जाएं कि मानव के रूप में जन्म लेना था किसी काम से
तो कम से कम किसी बडे कुल मे जन्म लेते
किसी सम्राट का पुत्र बनकर
जैसे रामावतार मे उन्होंने किया था
मैं यह नहीं कह रहा हूं कि वृष्णि वंश अवर था
फिर भी
देवक की पुत्री देवकी के गर्भ से
दशरथ जैसे प्रसिद्ध नहीं थे
राजा दशरथ सम्राट थे
भगवान ने ऐसा क्यों किया
सृष्टिकर्ता ब्रह्माजी भी उनके अधीन में हैं
चाहे तो ब्रह्माजी के ही शारीर से सात्वतों जैसे जन्म ले सकते थे
या जैसे महान समन्दर में नारायण बनकर आदिशेष के ऊपर अपने आप पधारे - यह भी कर सकते थे
एक साधारण नारी के गर्भ से ?
लेकिन ऐसा ही हुआ है जरूर।
तन्नः शुश्रूषमाणानामर्हस्यङ्गानुवर्णितुम्।
यस्यावतारो भूतानां क्षेमाय च भवाय च॥
भगवान अवतार क्यों लेते हैं , यह तो हमें पता है।
मानव जाति में अपने दिव्य तेज का संक्रमण करके उसका आध्यात्मिक उद्धार करने,
या पशु पक्षि सहित समस्त प्राणियों को किसी संकट से बचाने, या कुछ योग्य व्यक्तियों को मोक्ष देने।
ये सब अवतारों के सामान्य उद्देश्य हैं।
पर इस बार यह कुछ अलग ही लगता है।
क्या है इस अवतार का उद्देश्य?
हम नहीं पता कर सकते योग शक्ति द्वारा?
शायद।
शायद कर पाएंगे शायद नहीं कर पाएंगे।
कर पाएंगे तो उसमें वह सुख कहां है जो आपसे सुनने में है।
आपका स्रोत तो साक्षात भगवान ही हैं।
भगवान ही इस ज्ञान का स्रोत हैं जो आपके पास आपके गुरुजन के माध्यम से आया है।
इसमें एक और बात है।
अगर हम आपसे सुनेंगे तो हम ऋणी हो जाएंगे।
उसे किसी को सुनाने।
इस तरीके से इसका प्रसार भी होगा।
हमको जानना यह है कि अब इस बार इस असाधारण अवतार में भगवान असाधारण क्या करनेवाले हैं?
यह हमें बताइए।
ऐसा नहीं लगता कि किसी दुष्ट को मारने आये हैं।
इसके लिए परिपूर्णतम अवतार क्यों लेंगे?
इसके लिए अंशावतार ही काफी है।
या वैकुंठ में बैठे बैठे ही इसे कर सकते हैं।
सबसे पहले वसुदेव, प्रजापति सुतपा थे और देवकी उनकी पत्नी पृश्नि। उस समय भगवान ने पृश्निगर्भ के रूप में उनका पुत्र बनकर जन्म लिया। उसके बाद उस दंपति का पुनर्जन्म हुआ कश्यप - अदिति के रूप में। भगवान बने उनका पुत्र वामन। तीसरा पुनर्जन्म था वसुदेव - देवकी के रूप में।
वसुदेव और नन्दबाबा चचेरे भाई थे। देवकी वसुदेव की पत्नी थी और यशोदा नन्दबाबा की पत्नी।
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