यह कहानी मुद्गल पुराण, एकदंत खण्ड से ली गई है।

सृजन का समय था।

श्री हरि की नाभि से निकले कमल पर ब्रह्मा जी विराजमान थे।

श्री हरि की अनुमति से ब्रह्मा जी जी ध्यान करने लगे।

उनका शरीर गर्म हो गया और पानी (पसीना) बाहर बहने लगा।

जल्द ही, वह पानी चारों ओर भर गया।

 

ब्रह्मा जी को नहीं समझ में आया कि क्या करना है।

इस जल से विश्व की रचना कैसे हो सकती है?

ब्रह्मा जी कमल से उठकर पानी में इधर - उधर टहलने लगे।

उन्होंने एक वट वृक्ष देखा।

वह अक्षय वट था जो प्रलय के समय भी नष्ट नहीं होता।

उसके एक पत्ते पर एक छोटा बच्चा,अंगूठे के परिमाण का, लेटा हुआ था।

ब्रह्मा जी ने गौर से देखा।

बच्चे के चार हाथ थे और हाथी का सिर था।

उस बच्चे ने हसते हसते अपनी सूंड से ब्रह्मा जी पर जल छिड़क दिया।

 

ब्रह्मा जी को एहसास हुआ कि यह कोई और नहीं बल्कि श्री महागणपति हैं।

ब्रह्मा जी ने उनकी स्तुति की।

गणेश जी प्रसन्न हो गए और ब्रह्मा जी से पूछे कि उनके चेहरे पर चिंता क्यों है।

ब्रह्मा जी ने कहा - यहां बस चारों ओर पानी है। मैं नहीं जानता हूं कि इससे विश्व को किस तरह से बनाया जाए।

गणेश जी ने ब्रह्मा जी को अपनी सूंड से पकड़कर निगल लिया।

ब्रह्मा जी ने भगवान गणेश के पेट के अंदर लाखों ब्रह्माण्डों को देखा।

इसके बाद वे गणेश जी के एक रोमकूप से बाहर निकल आये और हाथ जोड़कर खडे हो गये।

 

गणेश जी ने कहा - आपका भ्रम इसलिए है क्योंकि जैसे ही आप सृजन के लिए उस कमल पर बैठे आपने मुझे याद नहीं किया। अब मैं आपसे प्रसन्न हूं। वापस जाइए और उस कमल पर बैठकर सृजन शुरू कीजिए। अब सब कुछ आसानी से हो जाएगा।

 

ब्रह्मा जी वापस चले गए और फिर से सृजन शुरू कर दि्ये।

इस बार, वे सफल हो गये और हमारा यह विश्व इस प्रकार अस्तित्व में आया।

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