भगवान श्रीकृष्ण के छः प्रकार के अवतार हैं।
अंशावतार - ब्रह्मा, विष्णु, और रुद्र भगवान श्रीकृष्ण के अंशावतार हैं।
ये जगत की सृष्टि, पालन और संहार करते हैं।
आपने श्रीकृष्ण को भगवान विष्णु के अवतार के रूप में जाना होगा।
गर्ग संहिता के अनुसार विष्णु श्रीकृष्ण के अवतार हैं।
अंशांशावतार - सृष्टि, पालन ओर संहार में जो त्रिदेवों का मदद करते हैं, वे हैं अंशांशावतार - जैसे सप्तर्षि।
कलावतार - जब अधर्म बढता है तो भगवान धर्म को पुनः संस्थापन करने के लिए मत्स्य, कूर्म आदि अवतार लेते हैं। इन्हें कलावतार कहते हैं।
आवेशावतार - किसी कार्य को सिद्ध करने के लिए भगवान कुछ समय के लिए किसी के शरीर में आवेश करते हैं, जैसे परशुराम जी। उस कार्य को संपन्न करने के बाद भगवान उस शरीर से निकल जाते हैं। यह है आवेशावतार।
पूर्णावतार - जिस अवतार में भगवान चतुर्व्यूह में प्रकट होते हैं (राम - लक्ष्मण - भरत - शत्रुघ्न या संकर्षण - वासुदेव - प्रद्युम्न - अनिरुद्ध) या बल और पराक्रम की पराकाष्ठा दिखाई देती है (नरसिंह), उसे पूर्णावतार कहते हैं।
परिपूर्णतम अवतार - श्रीकृष्ण के वृन्दावन में अवतार ही एकमात्र परिपूर्णतम अवतार है।
समुद्र मंथन के समय क्षीरसागर से भगवान श्री धन्वन्तरि अमृत का कलश लेकर प्रकट हुए। भगवान श्री हरि ने उन्हें आशीर्वाद दिया कि तुम जन्मान्तर में विशेष सिद्धियों को प्राप्त करोगे। धन्वन्तरि ने श्री हरि के तेरहवें अवातार के रूप में काशीराज दीर्घतपा के पुत्र बनकर जन्म लिया। आयुर्वेद का प्रचार करके इन्होंने लोक को रोग पीडा से मुक्त कराने का मार्ग दिखाया।
शिव पुराण के अनुसार शिव से पहले कोई नहीं था। शिव ही परब्रह्म हैं जिनसे जगत की उत्पत्ति हुई।