हम उन तीन नेत्रोंवाले शिव जी की पूजा करते हैं जिनकी कीर्ति का सुगन्ध हर जगह फैला हुआ है ओर जो हमारा पोषण करते हैं । वे हमें अपमृत्यु और अकाल मृत्यु से उसी प्रकार छुडायें जैसे एक कद्दू अपनी लता के बंधन से सहजता से छूटता है । वे हमें अमरत्व से अलग न होने दें ।
मृत्यु से छुडाने का अर्थ जन्म-मरण चक्र से मुक्ति दिलाना भी होता है।
त्र्यंबकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् । उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय मामृतात् ॥
ॐ जूँ सः ईँ सौः हँसः सञ्जीवनि सञ्जीवनि मम हृदयग्रन्थिस्थँ प्राणँ कुरु कुरु सोहँ सौः ईँ सः जूँ ॐ ॐ जूँ सः अमृठोँ नमश्शिवाय ।
ॐ जूँ सः - यह महामृत्युंजय मंत्र का बीज मंत्र है।
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