एक बार अनावृष्टि के कारण धरती पर भूखमरी पड गयी थी।
लोग एक दूसरे को मारकर खाने लगे।
इसका हल ढूंढकर कुछ ब्राह्मण गौतम मुनि के पास गये।
गौतम मुनि गायत्री के उपासक थे।
मुनि ने उन सबका सत्कार किया और आगमन का उद्देश्य पूछा।
गौतम मुनि - आप लोगों को कैसे यहां आना हुआ? कृपया बताइए।
ब्राह्मणों ने उन्हें अपने संकट के बारे में बताया।
गौतम मुनि - आप लोग इस आश्रम को अपना घर ही समझिये। मेरे रहते हुए आप लोगों को चिन्ता करने की जरूरत नहीं है। आप सब यहीं मेरे साथ रहने की कृपा कीजिए।
मुनि ने गायत्री देवी की स्तुति की।
देवी प्रकट हो गयी।
गायत्री देवी - मुने, इस अक्षय पात्र को लीजिए। आपको जो भी चाहिए, यह पात्र वह सब दे देगा।
गौतम मुनि ने उस पात्र द्वारा ब्राह्मणों को धन, धान्य, वस्त्र, गौ, यज्ञ के लिए उपयोगी सामग्री इत्यादि सब कुछ दे दिया।
ब्राह्मण प्रसन्न हो गये।
आश्रम का माहौल उत्सव जैसे बन गया।
दुश्मन और बीमारियां वहां झांककर भी नहीं देखते थे।
और भी लोग आश्रम में आने लगे।
मुनि ने सबको अभय दिया।
कई यज्ञ आयोजित हुए और उनके द्वारा देवता भी प्रसन्न हो गये।
मुनि के गायत्री मंदिर में सब लोग पूजा पाठ करने लगे।
एक बार नारद जी आश्रम में आये।
उन्होंने गौतम मुनि से कहा - आपका यशोगान देवलोक में भी हो रहा है। मैं स्वयं सुनकर आ रहा हूं।
इसके बावजूद गौतम मुनि को थोडा भी अहंकार नहीं हुआ।
लेकिन वहां मौजूद कुछ ब्राह्मणों को ईर्ष्या होने लगी।
उन्होंने माया से एक गाय को बनाया।
वह गाय बहुत दुर्बल दिखाई दे रही थी।
ब्राह्मणों ने उस गाय को यज्ञ करते हुए गौतम मुनि के पास भेज दिया।
मुनि उसे यागशाला से निकाल ही रहे थे वह गाय वहीं गिरकर मर गयी।
उन दुष्ट ब्राह्मणों ने हल्ला मचाया कि मुनि ने गाय को मार दिया।
यज्ञ समाप्त करके मुनि ने जो घटना घटी उसके बारे में सोचने लगे।
उन्हें ब्राह्मणों का षड्यंत्र समझ में आ गया।
उन्होंने उन ब्राह्मणों को शाप दिया - आज से तुम सब अधम बन जाओगे। आज से तुम्हारा वेद और गायत्री मंत्र पर अधिकार नही रहेगा। दान, श्राद्ध इत्यादि सत्कर्मों से तुम लोग विमुख हो जाओगे। तुम लोग अपने पिता, माता, पुत्र, भाई, पुत्री और भार्या का भी विक्रय करने लगोगे। वेद, धर्म और तीर्थ को धंधा बनानेवालों को जो दुर्गति मिलती है, वह तुम्हें भी मिलेगी। माता गायत्री तुम सब पर क्रोधित हो गयी हैं। तुम लोग और तुम्हारे वंशज नरक में जाकर गिरोगे।
शाप को सुनकर ब्राह्मण डर गये।
उन्होंने मुनि से माफी मांगकर कहा - हमसे बहुत बडी भूल हो गयी। हमें माफ कर दीजिए। शाप से छुटकारा दीजिए।
मुनि ने कहा - मेरा वचन कभी व्यर्थ नहीं होता। अब से भगवान श्रीकृष्ण के अवतार तक तुम लोग नरक में ही रहोगे। उसके बाद धरती पर जन्म ले सकते हो। लेकिन गायत्री की उपासना करते रहने तक ही मेरे शाप से बचते रहोगे। गायत्री मंत्र जपना छोड दिया तो तुम्हारी हालात समस्याओं और दुरितों से भरी हुई हो जाएगी।
इसलिए ब्राह्मणों को गायत्री मंत्र की साधना करना बहुत जरूरी है।
गायत्री मंत्र का अर्थ - हम श्रेष्ठतम सूर्य भगवान पर ध्यान करते हैं। वे हमारी बुद्धि को प्रकाशित करें।
गायत्री मंत्र के देवता सविता यानि सूर्य हैं। परंतु मंत्र को स्त्रीरूप मानकर गायत्री, सावित्री, और सरस्वती को भी इस मंत्र के अभिमान देवता मानते हैं।