कान्यकुब्ज में अजामिल नामक एक सदाचारी रहता था।
एक बार उसने एक वेश्या को देखकर कामवश हो गया।
वह धर्म और कर्म को भूलकर उसकी सेवा में लग गया।
अपनी पत्नी और परिवार को त्यागकर वह उस वेश्या का ही पालन पोषण करने लगा।
उसके दस पुत्र थे।
उनमें से सबसे छोटे का नाम था नारायण।
अट्ठासी वर्ष हो जाने पर अजामिल का मरने का वक्त आ गया।
उसका प्राण लेने यमदूत आये।
उनको देखते ही घबराकर अजामिल ने दूर खेलते हुए अपने पुत्र को नारायण नारायण कहकर बुलाया।
अपने स्वामी का दिव्य नाम सुनते ही भगवान विष्णु के पार्षद वहां आये।
उन्होंने यमदूतों को रोका।
यमदूतों ने विष्णु पार्षदों को अजामिल के पापों के बारे में बताया।
उसे यमलोक ले जाकर दण्ड देकर शुद्ध करना जरूरी था।
विष्णु पार्षदों ने कहा -
इसकी कोई जरूरत नहीं है क्योंकि इसने विवशता में श्रीहरि के नाम का उच्चार किया है।
इसका इस जन्म का ही क्यों करोडों जन्मों के पाप धुल चुके हैं।
नाम जप की शक्ति के कई प्रमाण पुराणों में मिलते हैं।
यस्य स्मृत्या च नामोक्त्या तपोदानक्रियादिषु।
न्यूनं सम्पूर्णतां याति सद्यो वन्दे तमच्युतम्॥
भगवान विष्णु के दिव्य नाम का उच्चारण करने से तप, दान और समस्त धार्मिक कार्यों में जो भी न्यूनता हो वह सब संपूर्ण हो जाते हैं।
अवशेनापि यन्नाम्नि कीर्तिते सर्वपातकैः।
पुमान् विमुच्यते सद्यः सिंहत्रस्तैर्मृगैरिव॥
जैसे शेर से डरकर हिरण भागते हैं, उसी प्रकार भगवान का नाम सुनकर पापजनित दुरित भी दूर भागते हैं।
देखिए, नाम जप की शक्ति।
भगवन्नाम का जप समस्त पापों का प्रायश्चित्त है।
नामोच्चार करनेवाले को भगवान अपना समझकर उसकी रक्षा करते हैं।
नामोच्चार करने से साधक में ब्रह्मविद्या प्रकाशित हो जाती है।
जो पापों का समूल विनाश चाहता है उसे नाम जप करना चाहिए।
भक्ति से ही क्यों, हंसी मजाक में, अवज्ञा से, निन्दा से किया हुआ नामोच्चार भी अच्छा फल देता है; इसका पुराणों में प्रमाण हैं।
एक बार किया हुआ नामोच्चार भी पापों को वैसे नष्ट कर देता है जैसे दीपक अंधेरे को।
बार बार नाम स्मरण करनेवाले पाप करने से सर्वदा बचे रहेंगे।
नाम जप के लिए उपदेश या दीक्षा की आवश्यकता नहीं है।
दवा के प्रभाव को न जानते हुए भी उसे खा लेने से बीमार स्वस्थ हो जाता है।
इस प्रकार नाम संकीर्तन में भी कोई पूर्व निबंधन नहीं है।
नाम की शक्ति श्रद्धा पर निर्भर नहीं करती; हां श्रद्धा से करें तो और भी लाभदायक है।
ये सब बातें कहकर विष्णु पार्षदों ने अजामिल को यमदूतों से छुडाया।
अजामिल ने अपने आगे का जीवन भगवान की सेवा में लगाकर मोक्ष को पाया।
भगवान और उनके नाम अविच्छेद्य हैं। गोस्वामी तुलसीदास जी के अनुसार भगवन्नाम का प्रभाव भगवान से अधिक हैं। भगवान ने जो प्रत्यक्ष उनके संपर्क में आये उन्हें ही सुधारा। उनका नाम पूरे विश्व में आज भी करोडों का भला कर रहा है।
सीताराम कहने पर राम में चार मात्रा और सीता में पांच मात्रा होती है। इसके कारण राम नाम में लघुता आ जाती है। सियाराम कहने पर दोनों में तुल्य मात्रा ही होगी। यह ज्यादा उचित है।
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