कुर्सी पर बैठकर भोजन न करें

पैरों को नीचे लटकाये रखने पर नाभि के नीचे की शिरायें तनी रहती हैं।

इसका पाचन पर बुरा प्रभाव पडता है। 

 

बुरे लोगों के सामने बैठकर भोजन न करें

न केवल भोजन के समय, बुरे लोगों के संग कभी नहीं रहना चाहिए।

 

टोपी पहनकर भोजन न करें

भोजन करते समय शरीर की ऊष्मा बढती है।

सिर को ढकने पर सिर से गर्मी को बाहर निकलने का मार्ग बंद हो जाता है।

यह मस्तिष्क के लिए हानिकारक है।

 

जूता या चप्पल पहनकर भोजन न करें

बाहर पहने हुए जूतों में या चप्पल में मल, मूत्र, थूक इत्यादियों के कण रहते हैं।

इनसे बीमारियां हो सकती हैं।

 

चमडे पर बैठकर या चमडा पहनते हुए (जैसे कमरबंद) भोजन न करें

चमडा उत्पाद अधिकतर गोचर्म या गोसल्ले से बनाये जाते हैं।

गायों के गर्भस्थ बच्चों की खालों को गोसल्ला कहते हैं।

इन हिंसाजनित वस्तुओं को भोजन के पास कोई स्थान नहीं है।

 

दांतों से काटी हुई वस्तु को पुनः न खायें

एक बार होठों से लगाये हुए गिलास में बचा हुआ पानी न पिएं

शाक, मूल इत्यादि दांतों से काटकर न खाएं

हानिकारक मौखिक कीटाणु अधिकतर दांतों से चिपकते रहते हैं।

दातों से या होठों से संपर्क में आये हुए पदार्थों पर ये लग जाते हैं।

 

टूटे हुए बर्तन या थाल से भोजन न करें

इससे दारिद्र्य होता है।

 

खाट, कपडा या चारपाई पर बैठकर या रखकर भोजन न करें 

परोसते समय सब्जी दही इत्यादियों का नीचे गिरना साधारण है।

खाट, चारपाई जैसे तलों से इन्हें पूरी तरह साफ करना असंभव हैं।

इन पर रोगोत्पादक कीटाणु बढते हैं।



हाथ में थाली रखकर भोजन न करें

हाथ में थाली रखकर खाने का अर्थ है बाये हाथ में।

हमारी संस्कृति में बायें हाथ को अपवित्र मानते हैं क्योंकि शौच के बाद उसी से साफ करते हैं।

 

घी के बिना भोजन न करें

वेद के अनुसार घी से दीर्घायु की प्राप्ति होती है।

 

झूठी वस्तुओं में घी न डालें

घी पवित्रता में सर्वश्रेष्ठ है।

उसे अपवित्र वस्तुओं के साथ संपर्क में लाना उचित नहीं है।

 

तांबे के बर्तन से भोजन न करें

तांबे के साथ संपर्क में आने से पानी को छोडकर अधिकतर पदार्थ विष बन जाते हैं।

 

वट, आक, पीपल इनसे बने दौने या पत्रावली पर रखकर भोजन न करें

इनके जैसे दूधवाले वृक्ष के पत्तों में रखा हुआ भोजन स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होगा।

ढाक, कमल, केला आदि के पत्ते अच्छे होते हैं।

 

भोजन को शरीर में स्थित परमात्मा की सेवा समझें।

अभक्ष्य भक्षणों द्वारा शरीर को अपवित्र न करें।

भोजन के नियमों का पालन अवश्य करें



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बहुत अच्छी जानकारी । -DD

आप जो अच्छा काम कर रहे हैं उसे जानकर बहुत खुशी हुई -राजेश कुमार अग्रवाल

🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏 -मदन शर्मा

वेद पाठशालाओं और गौशालाओं का समर्थन करके आप जो प्रभाव डाल रहे हैं उसे देखकर खुशी हुई -समरजीत शिंदे

आपकी वेबसाइट जानकारी से भरी हुई और अद्वितीय है। 👍👍 -आर्यन शर्मा

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संस्कृत में गण का अर्थ है समूह और ईश का अर्थ है प्रभु। गणेश का अर्थ है समूहों के स्वामी। वैदिक दर्शन में सब कुछ समूहों में विद्यमान है। उदाहरण के लिए: ११ रुद्र, १२ आदित्य, ७ समुद्र, ५ संवेदी अंग, ४ वेद, १४ लोक आदि। गणेश ऐसे सभी समूहों के स्वामी हैं जिसका अर्थ है कि वह हर वस्तु और प्राणी के स्वामी हैं।

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