भगवान विष्णु ने मत्स्य अवतार क्यों लिया?

एक बार जब विश्व बनाया जाता है तो वह ४.३२ अरब वर्षों तक चलता है।

इस काल को कल्प कहते हैं।

उसके बाद प्रलय में सब कुछ नष्ट हो जाता है।

प्रलय के समय भूमि जैसे समस्त लोक जलमग्न हो जाते हैं। 

 

पिछले कल्प के अंत में ... 

 

मनु धरती के शासक थे।

वे सारे मनुष्यों के पूर्वज थे।

एक दिन, वह कृतमाला नदी में पितरों के लिए तर्पण कर रहे थे।

एक छोटा मत्स्य उनकी हथेलियों में पानी में फंस गया।

वे उसे वापस नदी में छोडने ही वाले थे, तब मत्स्य ने कहा - कृपया ऐसा मत कीजिए।

नदी के क्रूर जानवर हैं जिनसे मैं डरता हूं।

मनु ने मत्स्य को अपनी कमण्डलु में डालकर और उसे महल ले गया।

जब तक वे महल पहुंचे मत्स्य उस कमण्डलु के बराबर बडा हो गया था।

मनु ने उसे एक बड़े बर्तन में डाल दिया

मत्स्य आकार में बढ़ता ही रहा।

उसे एक बावड़ी में डाला, फिर एक झील में, और अंत में समुद्र में।

मनु समझ गया कि वह कोई साधारण मत्स्य नहीं है।

हाथ जोड़कर उन्होंने मत्स्य  से कहा - मुझे एहसास हो गया कि आप कोई और नहीं बल्कि श्रीमन नारायण ही हैं।

आप इस तरह से मेरा परीक्षा क्यों ले रहे हैं?

मत्स्य ने कहा: हाँ, तुम ठीक कह रहे हो; मैं नारायण हूँ।

मैं ने विश्व की रक्षा के लिए मत्स्य के रूप में अवतार लिया है।

अब से सात दिन बाद प्रलय आने वाली है।

उस समय, एक नाव दिखाई देगी।

तुम सप्तर्षियों को उस नाव में आमंत्रित करके हर प्रकार के बीज भी रख लेना।

प्रलय के दौरान भयानक लहरें उठेंगी।

नाव को स्थिर रखने के लिए मेरे सींग से बांधकर रखना।

जब तक ब्रह्मा अगली रचना के लिए तैयार नहीं हो जाते तब तक नाव में ही रहो। 

(प्रलय के बाद, ४.३२ अरब वर्षों तक ब्रह्मा की रात है। उसके बाद फिर से सृजन होता है।)

यह कहने के बाद, मत्स्य अन्तर्धान हो गया।

सात दिन बाद जगत जलमग्न हो गया।

उस समय एक नाव और एक बडा मत्स्य दिखाई दिये।

मनु ने भगवान के निर्देशों का पालन किया और अगला सृजन होने तक नाव में ही रहा।

जब ब्रह्मा जाग गए और फिर से सृष्टि करना शुरू कर दिया, तो उन्होंने फिर से मनुष्य के पूर्वज के रूप में अपना कर्तव्य निभाया।

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