प्रातः स्मरामि गणनाथ - मनाथबन्धुं 

सिन्दूरपूर - परिशोभित - गण्डयुग्मम्। 

उद्दण्डविघ्न - परिखण्डन - चण्डदण्डमाखण्डलादि - सुरनायक - वृन्दवन्द्यम्॥ 

 

श्रीगणेश जी -

जो अनाथों के बन्धु हैं,

जिनकी दोनों कनपटी सिन्दूर से शोभा पा रही हैं,

जो बडे बडे विघ्नों का विनाश करते हैं,

जिनकी वन्दना इन्द्रादि देव भी करते हैं,

उनका मैं प्रातःकाल स्मरण करता हूँ।

 

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आपकी वेबसाइट अद्वितीय और शिक्षाप्रद है। -प्रिया पटेल

बहुत प्रेरणादायक 👏 -कन्हैया लाल कुमावत

गुरुजी का शास्त्रों की समझ गहरी और अधिकारिक है 🙏 -चितविलास

सनातन धर्म के भविष्य के प्रति आपकी प्रतिबद्धता अद्भुत है 👍👍 -प्रियांशु

वेदधारा की धर्मार्थ गतिविधियों का हिस्सा बनकर खुश हूं 😇😇😇 -प्रगति जैन

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