अयोध्या का इतिहास
पहिला अध्याय
अयोध्या की महिमा
अयोध्या जिसे अवध और साकेत भी कहते हैं अत्यन्त प्राचीन नगर है। यह पहिले उत्तरकोशल की राजधानी थी जिसमें सुख समृद्धि के साथ हि्न्दू लोग जिस वस्तु की आकांक्षा करते या जिसका आदर सम्मान करते हैं वह सब प्राप्त हो चुका था जैसा कि अब मिलना असम्भव है
और जो उस तेजधारी राजवंश का निवास स्थान था जो सूर्यदेव से उत्पन्न हुआ और जिसमें ६० निर्दोष शासकों के पीछे मर्यादापुरुषोत्तम श्रीरामचन्द्र का अवतार हुआ । इस वीर को ऐतिहासिक समालोचना पीछे से मनुष्य की कल्पना का सर्वोत्तम निसर्ग सिद्ध करे या अद्धऐतिहामिक स्थान दे, इस पर विचार करना व्यर्थ है। इतिहास का उस प्रभाव से सम्बन्ध है जो इनके चरित्र का इस बड़ी आर्यजाति के सामाजिक और धार्मिक विश्वास पर है और इतिहास यह भी देखता है कि इनकी जन्म-भूमि की यात्रा की बड़ी श्रद्धा और भक्ति से यात्रियों की ऐसी भीड़ आती है, जैसे किसी दूसरे तीर्थ में नहीं।
आध्यात्मिक विकास के लिए, पहचान और प्रतिष्ठा की चाह को पहचानना और उसे दूर करना जरूरी है। यह चाह अक्सर धोखे की ओर ले जाती है, जो आपके आध्यात्मिक मार्ग में रुकावट बन सकती है। भले ही आप अन्य बाधाओं को पार कर लें, प्रतिष्ठा की चाह फिर भी बनी रह सकती है, जिससे नकारात्मक गुण बढ़ते हैं। सच्चा आध्यात्मिक प्रेम, जो गहरे स्नेह से भरा हो, तभी पाया जा सकता है जब आप धोखे को खत्म कर दें। अपने दिल को इन अशुद्धियों से साफ करने का सबसे अच्छा तरीका है उन लोगों की सेवा करना जो सच्ची भक्ति का उदाहरण हैं। उनके दिल से निकलने वाला दिव्य प्रेम आपके दिल को भी शुद्ध कर सकता है और आपको सच्चे, निःस्वार्थ प्रेम तक पहुंचा सकता है। ऐसे शुद्ध हृदय व्यक्तियों की सेवा करके और उनसे सीखकर, आप भक्ति और प्रेम के उच्च सिद्धांतों के साथ खुद को संरेखित कर सकते हैं। आध्यात्मिक शिक्षाएं लगातार इस सेवा के अपार लाभों पर जोर देती हैं, जो आध्यात्मिक विकास की कुंजी है।
आई माता मंदिर, बिलाडा, जोधपुर, राजस्थान। यहां के ज्योत से काजल जैसे केसर निकलता है।
दीन - दयालु दिवाकर देवा - गोस्वामी तुलसीदासजी द्वारा कृत सूर्य स्तुति
देवी पार्वती से ब्रह्माजी कहते हैं - यह जो भाग्य लिखने का काम है न इसे किसी और को सौंपिये
अंबिका स्तव
स्मितास्यां सुरां शुद्धविद्याङ्कुराख्यां मनोरूपिणीं �....
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