पृथ्वी ने पूछा - मेरा उद्धार करनेवाले भगवन्! आपके श्रीविग्रह का स्पर्श पाकर महान् विक्रमशाली सर्प कैसे मूर्तिमान बन गये तथा उन्हें आपने क्यों बनाया? भगवान् वराह बोले - वसुंधरे! गणपति के जन्म का वृत्तान्त सुनने के पश्चात् राजा प्रजापाल ने यही प्रसङ्ग बड़ी मीठी वाणी में उत्तमव्रती महातपा से पूछा था।
राजा प्रजापाल ने पूछा - भगवन्! कश्यपजी के वंश से सम्बन्धित नाग तो बड़े ही दुष्ट प्रकृति के थे। फिर उन्हें विशाल शरीर धारण करने का अवसर कैसे मिल गया? यह प्रसङ्ग आप मुझे बताने की कृपा कीजिये । मुनिवर महातपाजी कहते हैं - राजन् ! मरीचि ब्रह्माजी के प्रथम मानस पुत्र थे। उनके पुत्र कश्यपजी हुए । मन्द मुसकानवाली दक्ष की पुत्री कद्रू उनकी भार्या हुई। उससे कश्यपजी के अनन्त, वासुकि, महाबली कम्बल, कर्कोटक, पद्म, महापद्म, शङ्ख, कुलिक और पापराजिल आदि नामों से विख्यात अनेक पुत्र हुए। राजेन्द्र ! ये प्रधान सर्प कश्यपजीके पुत्र हैं। बाद में इन सर्पों की संतानों से यह सारा संसार ही भर गया। वे बड़े कुटिल और नीच कर्ममें रत थे। उनके मुँहमें अत्यन्त तीखा विष भरा था।
ஓம் முருகா,குரு முருகா,அருள் முருகா,ஆனந்த முருகா சிவசக்தி பாலகனே ஷண்முகனே சடாக்ஷ்ரனே என் வாக்கிலும் நினைவிலும் நின்று காக்க ஓம் ஐம் ஹ்ரீம் வேல் காக்க சுவாஹா.
1. ஹிரண்யாக்ஷன்-ஹிரண்யகசிபு 2. ராவணன்-கும்பகர்ணன் 3. சிசுபாலன்-தண்தாவக்ரன்.
யுகப்போக்கில் தர்மம் குறைந்து கொண்டே வருவது ஏன்? பகுதி 2
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திவாகர பஞ்சக ஸ்தோத்திரம்
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