बदरीक्षेत्र और वहां भगवान के प्रसाद ग्रहण की विशेष महिमा
स्कन्द ने पूछा - प्रभो! भगवान् विष्णु वहाँ किसलिये निवास करते हैं? उनके दर्शन और स्पर्श आदि से किस पुण्य और किस फल की प्राप्ति होती है?
भगवान् शिव बोले - पहले सत्ययुग के आदि में भगवान् विष्णु सब प्राणियों का हित करने के लिये मूर्तिमान् होकर रहते थे। त्रेतायुग में ऋषिगणों को केवल योगाभ्यास से दृष्टिगोचर होते थे। द्वापर आने पर भगवान् सर्वथा दुर्लभ हो गये, उनका दर्शन कठिन हो गया। तब देवता और मुनि बृहस्पतिजी को आगे करके ब्रह्माजी के लोक में गये और उन्हें प्रणाम करके बोले - पितामह ! आपको नमस्कार है। आप समस्त जगत के आश्रय और शरणागतों के दु:ख दूर करनेवाले हैं। सुरेश्वर! आपका हृदय करुणा से भरा हुआ है। जबसे द्वापर आया है, विशाल बुद्धिवाले भगवान् विष्णु विशालापुरी (बदरिकाश्रम) में नहीं दिखायी देते हैं। इसका क्या कारण है, बतलाइये?
ब्रह्माजी बोले-देवताओ! मैं इस बातको नहीं जानता। आज तुम्हारे ही मुँहसे इसको सुना है। आओ, हम लोग क्षीरसमुद्र के तटपर चलें। ब्रह्माजीके ऐसा कहने पर देवता और तपोधन मुनि उन्हें आगे करके गये और क्षीरसागर पर पहुँचकर विचित्र पद एवं अर्थवाली वाणीद्वारा देवाधिदेव जगदीश्वर विष्णु की स्तुति करने लगे। ब्रह्माजी बोले- समस्त प्राणियों की हृदयगुफा में निवास करनेवाले पुरुषाध्यक्ष! आपको नमस्कार है। वासुदेव! आप सबके आधार हैं, संसार की उत्पत्ति के कारण हैं और यह समस्त जगत् आपका स्वरूप है। आप ही सम्पूर्ण भूतों के हेतु, पति और आश्रय हैं। एकमात्र सुन्दर पुरुषोत्तम! आप अपनी मायाशक्ति का आश्रय लेकर विचरते हैं।
श्रीवेङ्कटेश सुप्रभातम् के रचयिता हैं प्रतिवादि भयंकरं अण्णन्।
व्रत करने से देवी देवता प्रसन्न होकर आशीर्वाद देते हैं। जीवन में सफलता की प्राप्ति होती है। मन और इन्द्रियों को संयम में रखने की क्षमता आती है।