बदरिकाश्रम में निवास करनेवाले ऋषि  नारायण, नरों में उत्तम श्रीनर तथा उनकी लीला प्रकट करनेवाली भगवती सरस्वती को नमस्कार कर जय (पुराण एवं इतिहास आदि सद्ग्रन्थों) का पाठ करना चाहिये। कूर्मरूप धारण करनेवाले अप्रमेय भगवान् विष्णु को नमस्कार कर मैं उस पुराण (कूर्मपुराण) को कहूँगा, जो समस्त विश्व के मूल कारण भगवान् विष्णुके द्वारा कहा गया था॥१॥

नैमिषारण्यवासी महर्षियोंने बारह वर्षतक चलनेवाले सत्र (यज्ञ) के पूर्ण हो जाने पर सर्वथा निष्पाप रोमहर्षण सूतजी से पवित्र पुराण-संहिता के विषय में प्रश्न किया - महाबुद्धिमान् सूतजी महाराज! आपने इतिहास और पुराणों के ज्ञान के लिये ब्रह्मज्ञानियों में परम श्रेष्ठ भगवान् वेदव्यासजी की भलीभाँति उपासना की है। चूंकि आपके वचन से द्वैपायन भगवान् वेदव्यासजी के समस्त रोम हर्षित हो गये थे, इसलिये आप रोमहर्षण कहलाते हैं॥

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श्रीराम जी का अचल स्वरूप

श्रीराम जी न तो कहीं जाते हैं, न कहीं ठहरते हैं, न किसी के लिए शोक करते हैं, न किसी वस्तु की आकांक्षा करते हैं, न किसी का परित्याग करते हैं, न कोई कर्म करते हैं। वे तो अचल आनन्दमूर्ति और परिणामहीन हैं, अर्थात उनमें कोई परिवर्तन नहीं होता। केवल माया के गुणों के संबंध से उनमें ये बातें होती हुई प्रतीत होती हैं। श्रीराम जी परमात्मा, पुराणपुरुषोत्तम, नित्य उदय वाले, परम सुख से सम्पन्न और निरीह अर्थात् चेष्टा से रहित हैं। फिर भी माया के गुणों से सम्बद्ध होने के कारण उन्हें बुद्धिहीन लोग सुखी अथवा दुखी समझ लेते हैं।

गौओं को बार-बार नमस्कार

नमो गोभ्यः श्रीमतीभ्यः सौरभेयीभ्य एव च । नमो ब्रह्मसुताभ्यश्च पवित्राभ्यो नमो नमः || - श्रीमती गौओंको नमस्कार ! कामधेनुकी संतानों को नमस्कार । ब्रह्माजी की पुत्रियों को नमस्कार ! पावन करनेवाली गौओं को बार-बार नमस्कार ।

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