ब्रह्मचारी, गृहस्थ, वानप्रस्थ और संन्यासी-सभी जुटे हुए थे। झुंड की-झंड गौएँ उस वन की शोभा बढ़ा रही थीं। नैमिषारण्यवासी मुनियों का द्वादशवार्षिक (बारह वर्षों तक चालू रहनेवाला) यज्ञ आरम्भ था। जौ, गेहूँ, चना, उड़द, मूंग और तिल आदि पवित्र अन्नोंसे यज्ञमण्डप सुशोभित था। वहाँ होमकुण्ड में अग्निदेव प्रज्वलित थे और आहुतियाँ डाली जा रही थीं। उस महायज्ञ में सम्मिलित होने के लिये बहुत-से मुनि और ब्राह्मण अन्य स्थानों से आये। स्थानीय महर्षियों ने उन सबका यथा योग्य सत्कार किया। ऋत्विजों सहित वे सब लोग जब आराम से बैठ गये, तब परम बुद्धिमान् लोमहर्षण सूतजी वहाँ पधारे। उन्हें देखकर मुनिवरों को बड़ी प्रसन्नता हुई, उन सब ने उनका यथावत् सत्कार किया। सूतजी भी उनके प्रति आदर का भाव प्रकट करके एक श्रेष्ठ आसन पर विराजमान हुए। उस समय सब ब्राह्मण सूतजी के साथ वार्तालाप करने लगे। बातचीत के अन्तमें सबने व्यास-शिष्य लोमहर्षण जी से अपना संदेह पूछा।
Bhau Beej, Bhai Tika, or Bhai Phonta.
Agastya-Tardhachyuta-Saumavaha
Devi Mantra For Power
भुवनेश्वर्यै च विद्महे नारायण्यै च धीमहि । तन्नो देवी प्....
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Kumara Mangala Stotram
yajnyopaveeteekri'tabhogiraajo ganaadhiraajo gajaraajavaktrah'.....
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