भगवान कैलाशपति शंकर कहते हैं - ब्रह्मचर्य अर्थात् वीर्य धारण यही उत्कृष्ट तप है। इससे बढकर तपश्चर्या तीनॊं लोकों में दूसरी कोई भी नहीं हो सकती। ऊर्ध्वरेता पुरुष अर्थात् अखण्ड वीर्य का धारण करनेवाला पुरुष इस लोक में मनुष्य रूप में प्रत्यक्ष देवता ही है।

शास्त्र में ब्रह्मचर्य नाश के आठ मैथुन बताये हैं।

  1. किसी जगह पढे हुए, सुने हुए या चित्र में व प्रत्यक्ष में देखे हुए स्त्री का ध्यान, स्मरण या चिन्तन करना।
  2. स्त्रियों के रूप, गुण और अङ्ग - प्रत्यङ्ग का वर्णन करना।

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वेद धारा समाज के लिए एक महान सीख औऱ मार्गदर्शन है -Manjulata srivastava

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