श्लोक - वर्णानामर्थसङ्घानां रसानां छन्दसामपि।
मङ्गलानां च कर्तारौ वन्दे वाणीविनायकौ॥
अक्षर, अर्थ-समूह, रस, छन्द और मङ्गल के करनेवाले सरस्वती और गणेश जी को मैं प्रणाम करता हूं।
भवानीशङ्करौ वन्दे श्रद्धाविश्वासरूपिणौ।
याभ्यां विना न पश्यन्ति सिद्धाः स्वान्तः स्थमीश्वरम्॥
श्रद्धा और विश्वासरूपी भवानी-श्ङ्कर की मैं वन्दना करता हूं जिनके बिना सिद्धजन अपने हृदय में स्थित ईश्वर को नहीं देखते।
ॐ विष्णु चक्र चक्रौति भार्गवन्ति, सैहस्त्रबाहु चक्रं चक्रं चक्रौती युद्धं नाष्यटष्य नाष्टष्य चल चक्र, चक्रयामि चक्रयामि. काल चक्रं भारं उन्नतै करियन्ति करियन्ति भास्यामि भास्यामि अड़तालिशियं भुजगेन्द्र हारं सुदर्शन चक्रं चलायामि चलायामि भुजा काष्टं फिरयामि फिरयामि भूर्व : भूवः स्वः जमुष्ठे जमुष्ठे चलयामि रुद्र ब्रह्म अंगुलानि ब्रासमति ब्रासमति करियन्ति यमामी यमामी ।
शिव पुराण के अनुसार शिव से पहले कोई नहीं था। शिव ही परब्रह्म हैं जिनसे जगत की उत्पत्ति हुई।
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