धर्म ही जिसका सुदृढ मूल है, वेद जिसका तना है, पुराणरूपी शाखाओं से जो समृद्ध है, यज्ञ जिसका पुष्प है और मोक्ष जिसका फल है, ऐसे भगवान मधुसूदनरूपी कल्पवृक्ष की जय हो। देव - क्षेत्र नैमिषारण्य में स्वर्गलोक की प्राप्ति की कामना से शौनकादि ऋषियों ने एक बार सहस्र वर्ष में पूर्ण होनेवाला यज्ञ प्रारम्भ किया।
भस्म धारण करने से हम भगवान शिव से जुड़ते हैं, परेशानियों से राहत मिलती है और आध्यात्मिक संबंध बढ़ता है।
श्रीवेङ्कटेश सुप्रभातम् के रचयिता हैं प्रतिवादि भयंकरं अण्णन्।
पुराणों का विकास
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