शिवलिंग की पूजा करने से मोक्ष की प्राप्ति कैसे होती है ?
नाद और बिन्दु, शैव और शाक्त सिद्धान्तों में इस आशय का बहुत ही महत्त्व है।
सृष्टि क्या है?
अनंत के अन्दर परिमित को बनाना, सीमाबद्ध को बनाना।
समुद्र में पानी है।
दो बोतलों में समंदर से ही पानी भरकर उन बोतलों को समंदर में ही डाल दिया।
मैं और आप इन बोतलों के जैसे हैं।
अन्दर एक ही वस्तु पर अस्तित्व अलग - अलग प्रतीत होता है।
उस बोतल की कांच से बनी भित्ति ही एक या दो लीटर पानी को सीमाबद्ध करके उसे व्यष्टि की प्रतीति प्रदान करती है।
सृजन में भी यही होता है।
प्राणियों को त्वचा रूपी भित्तियों से परिमित करना, वस्तुओं को परिमाण से घनफल से परिमित करना, यहि सृजन की प्रक्रिया है।
शब्द में भी देखिए , कंठ में से एक सा नाद ही निकलता है।
गले की पेशियां, जीभ, ओंठ ये सब उसका दमन करते हैं तो वह अक्षरों और शब्दों के रूप में परिणत होता है।
पकार का उच्चार करके देखिए - इसमे ओंठ लगेंगे।
टकार का उच्चार करके देखिए - इसमे ओंठ बन्द नही करना पडता है, जीभ लगता है इसमें।
एक सा नाद को अलग - अलग नालियों में से निकालने से, इस प्रकार उसकी सीमा बांधने से अलग - अलग अक्षर बनते हैं।
प्रलय के बाद ४.३२ अरब साल बीतने के बाद, भोलेनाथ को लगता है कि अब सृजन किया जायें।
तो अपने ही कुछ अंश को भगवान नाद के रूप में परिणत करते हैं।
फिर इस नाद में ही जैसे दही से मक्खन, उस प्रकार बिन्दु घनीभूत होता है।
इस बिन्दु से ही सृष्टि होती है।
नाद है शब्द रूपी ऊर्जा।
बिन्दु है घनीभूत ऊर्जा।
इसमें नाद है शिव।
बिन्दु है शक्ति।
शक्ति शिव का ही अंश है।
पर इस सृश्ट्युन्मुख अवस्था में, शिव से भिन्न भी प्रतीत होती है।
जैसे लहर समंदर से पृथक प्रतीत होती है।
लहर समुद्र का ही भाग है।
फिर भी पृथक प्रतीत होती है।
अर्धनारीश्वर में देखिए, एक ही शरीर है, पर उसी में पुरुष और स्त्री के हिस्से अलग - अलग दिखाई देते हैं।
तो जगत का आधार है बिन्दु।
बिन्दु का आधार है नाद।
सृजन के समय नाद से बिन्दु होती है।
बिन्दु से जगत।
प्रलय के समय जगत अणु परिमाण में होकर बिन्दु मे लय होता है।
बिन्दु का नाद में लय होता है।
जैसे लहर का समुद्र में लय होता है।
शिवलिंग मे नाद और बिन्दु दोनों का समन्वय।
शिवलिंग का ऊपरला हिस्सा शिव है, नाद है।
इसे चारों ओर से परिमित करके शक्ति बिन्दु के रूप पीठ बनी हुई है।
तो शिवलिंग सृष्टि का भी प्रतीक है, संहार का भी प्रतीक है।
इस संहार तत्त्व को समझकर शिव लिंग की पूजा करेंगे तो पुनर्जन्म नहीं होगा।
बिन्दुनादात्मकं सर्वं जगत् स्थवरजंगमम्।
बिन्दुनादात्मकं लिङ्गं जगत्कारणमुच्य्ते।
तस्माज्जन्मनिवृत्यर्थं शिवलिङ्गं प्रपूजयेत्।।
श्राद्धात् परतरं नान्यच्छ्रेयस्करमुदाहृतम् । तस्मात् सर्वप्रयत्नेन श्राद्धं कुर्याद्विचक्षणः ॥ - (हेमाद्रि ) - श्राद्ध से बढ़कर कल्याणकारी और कोई कर्म नहीं होता । अतः प्रयत्नपूर्वक श्राद्ध करते रहना चाहिये।
पांच - विष्णुप्रयाग, नन्दप्रयाग, कर्णप्रयाग, रुद्रप्रयाग, देवप्रयाग । प्रयागराज इन पांचों का मिलन स्थान माना जाता है ।
सफला एकादशी व्रत कथा
सफला एकादशी, विशेष रूप से भगवान नारायण का दिन है, सभी एकाद�....
Click here to know more..दुष्कर्मों से रक्षा मांगकर प्रार्थना
यमुना अमृत लहरी स्तोत्र
मातः पातकपातकारिणि तव प्रातः प्रयातस्तटं यः कालिन्दि म�....
Click here to know more..