अग्नि का वास स्वर्ग, भूमि या पाताल में होता है।
यज्ञ, हवन इत्यादि के लिए अग्नि की स्थापना और पूर्णाहुति उन दिनों में ही करें जब अग्नि का वास पृथ्वी पर हो।
इस से उस कर्म का परिणाम शुभ होगा।
अग्नि का स्वर्ग में वास होते समय हवन इत्यादि करने से यजमान की मृत्यु हो सकती है। अग्नि का वास पाताल में होते समय कार्य करने से धन की हानि हो सकती है।
जिस दिन हवन करना हो, शुक्ल पक्ष प्रतिपदा से उस दिन तक की तिथि की संख्या गिनिए। उदा- कृष्ण पक्ष की पंचमी को हवन करना हो तो तिथि संख्या १५ +५ = २० होगी।
इस के साथ उस दिन की वार की संख्या जोडिए।
रविवार-१, सोमवार-२ इत्यादि। मान लीजिए उस दिन बुधवार है।
तो वार संख्या ४ हुई।
२०+४ = २४, इसके साथ संख्या १ और जोडिए २४+१ = २५, इसे ४ से भाग देने से यदि ३ या शून्य शेष रहे अग्नि का वास पृथ्वी पर है और शुभ है।
१ शेष रहे तो अग्निवास स्वर्ग में और २ शेष रहे तो अग्निवास पाताल में है।
ये दोनों हानिकारक हैं।
उदाहरण में २५ को ४ से भाग देने से शेष - १, यह अशुभ है क्यों कि उस दिन अग्नि का वास स्वर्ग में है।
गर्भाधानादि संस्कार निमित्तक हवन, नित्य होम, दुर्गाहोम, रुद्र होम, वास्तुशान्ति, विष्णु की प्रतिष्ठा, ग्रहशान्ति होम, नवरात्र होम, शतचण्डी, लक्षहोम, कोटिहोम, पितृमेध, उत्पात शान्ति - इनमें अग्निवास देखना आवश्यक नहीं है।
जमवाई माता कछवाहा वंश की कुलदेवी है। कछवाहा वंश राजपूतों की एक उपजाति और सूर्यवंशी है।
श्रीराम जी की प्रतिज्ञा थी कि सीता के अलावा कोई भी अन्य महिला उनकी मां कौशल्या के समकक्ष होगी। उन्होंने वादा किया कि वह किसी दूसरी महिला से शादी नहीं करेंगे और न ही इसके बारे में सोचेंगे। यज्ञों के लिए आवश्यक होने पर भी, राम ने दूसरी पत्नी का चयन नहीं किया; इसके बजाय, सीता की स्वर्ण प्रतिमा उनके बगल में रखी गई थी।