गौ माता सुरभि ने कैलास के शिखर पर एक पैर से खडी होकर ग्यारह हजार सालों तक योग द्वारा तपस्या की थी। उस तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्मा जी ने गौ माता को सबकी अभिलाषाएं पूर्ण करने की शक्ति दे दी।
सीताराम कहने पर राम में चार मात्रा और सीता में पांच मात्रा होती है। इसके कारण राम नाम में लघुता आ जाती है। सियाराम कहने पर दोनों में तुल्य मात्रा ही होगी। यह ज्यादा उचित है।
ऋषिगण बोले: अब हमारे मन में एक संदेह आ गया है। हम ने तो यही समझा था कि ब्रह्मा, विष्णु और शंकर से बढ़कर विश्व में कोई देवता नहीं है। ये तीनों एक ही मूर्ति का अलग अलग स्वरूप हैं। ब्रह्मा रजोगुणी तो विष्णु सत्वगुणी और महेश तमोग�....
ऋषिगण बोले: अब हमारे मन में एक संदेह आ गया है।
हम ने तो यही समझा था कि ब्रह्मा, विष्णु और शंकर से बढ़कर विश्व में कोई देवता नहीं है।
ये तीनों एक ही मूर्ति का अलग अलग स्वरूप हैं।
ब्रह्मा रजोगुणी तो विष्णु सत्वगुणी और महेश तमोगुणी।
ब्रह्मा सृष्टि करते हैं, विष्णु पालन करते हैं और भोलेनाथ संहार करते हैं।
भगवान विष्णु के सामर्थ्य और श्रेष्ठता के ऊपर भी कोई शक नही है।
लेकिन हम समझ नहीं पा रहे है कि योगमाया ने भगवान के शरीर से चेतना को, जीवन की चेष्टा को कैसे निकाल दिया?
देवी ने उनको सुला कैसे दिया?
उस समय भगवान की चेतना कहाँ चली गयी?
यह जो शक्ति है जिसने भगवान को अपने वश में कर लिया, उस शक्ति की उत्पत्ति कब और कहाँ हुई?
इस शक्ति का स्वरूप क्या है?
हमें विस्तार से बताइए।
भगवान विष्णु सबके स्वामी हैं, जगद्गुरु हैं, परमात्मा हैं, परमानन्द के स्वरूप हैं, सर्वव्यापी सबके रक्षक हैं।
वे कैसे परवश हो गये?
कैसे इस शक्ति के अधीन हो गये?
सूतजी बोले: इस शंका का समाधान बहुत कठिन है।
सनकादि कुमार जो ज्ञानियों में सबसे श्रेष्ठ माने जाते हैं, कपिल जैसे महर्षि, वे भी इस शंका का समाधान नहीं कर पायेंगे; तो मेरा क्या कहना?
भगवान विष्णु की उपासना लोग नारायण, हृशीकेश, वासुदेव, जनार्दन जैसे अनेक रूपों द्वारा करते हैं।
कुछ लोग इसी उपासना को महादेव, शंकर, त्र्यंबक, रुद्र के रूप में भी करते हैं।
वेदों में सूर्य की उपासना प्रसिद्ध है।
सन्ध्या कालों में और मध्याह्न में सूर्य की उपासना की जाती है।
वेदों में अग्नि, इन्द्र और वरुण जैसे देवताओं की उपासना भी बताया है।
कहा जाता है कि जितनी पुण्य नदियां हैं, उन सब में गंगा जी का सान्निध्य है।
इसी प्रकार जितनी देवी-देवता हैं उन सब में भगवान विष्णु का सान्निध्य है।
विद्वान लोग कहते हैं कि तीन प्रकार के प्रमाण हैं।
प्रमाण अर्थात किसी भी तत्व को सत्य मानने के लिये इनमें से किसी एक की सम्मति होना ज़रूरी है।
सनातन धर्म के विद्वान भगवान को भी ऐसे नहीं मान लेते है।
उनको प्रमाण चाहिए हर चीज़ के लिये।
किसी ने कह दिया भगवान है; वे नहीं मानते।
कहीं पर लिखा हुआ भगवान है; वे नहीं मानेंगे, प्रमाण लाओ।
किसी ने बोला त्रिदेव हैं; वे नहीं मानेंगे, बोलेंगे प्रमाण लाओ।
यह जो सनातन धर्म जो अभी हमारे पास है यह इन सब प्रमाणों द्वारा जांचा हुआ है।
सनातन धर्म एकमात्र धर्म है जो कहता है, प्रमाण लाओ, भगवान का भी अस्तित्व के लिये, हर धार्मिक तत्व की साधुता के लिये।
एसे नही मानते किसी चीज़ को।
तीन प्रकार के प्रमाण हैं: प्रत्यक्ष, अनुमान और शब्दप्रमाण।
उसमें भी न्याय शास्त्र के विद्वान चार प्रमाणों को मानते हैं: प्रत्यक्ष, अनुमान, शब्द प्रमाण और उपमान।
मीमांसक पाँच प्रमाणों को मानते हैं: - प्रत्यक्ष, अनुमान, शब्दप्रमाण, उपमान और अर्थापत्ति।