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इस परोपकारी कार्य में वेदधारा का समर्थन करते हुए खुशी हो रही है -Ramandeep

वेदधारा से जुड़ना एक आशीर्वाद रहा है। मेरा जीवन अधिक सकारात्मक और संतुष्ट है। -Sahana

सनातन धर्म के भविष्य के लिए वेदधारा का योगदान अमूल्य है 🙏 -श्रेयांशु

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कैसे अस्तित्व में आई नर्मदा नदी

भगवान शिव घोर तपस्या कर रहे थे। उनका शरीर गर्म हो गया और उनके पसीने से नर्मदा नदी अस्तित्व में आई। नर्मदा को शिव की पुत्री माना जाता है।

वैभव लक्ष्मी के व्रत करने से क्या फल मिलता है?

वैभव लक्ष्मी व्रत करने से सौभाग्य और समृद्धि की प्राप्ति होती है। इस व्रत को करने से मां लक्ष्मी प्रसन्न होती है । इससे धन, स्वास्थ्य और सुख में वृद्धि होती है। इसके अतिरिक्त, वैभव लक्ष्मी के लिए उपवास करने से शरीर और मन शुद्ध हो जाते हैं ।

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गोरखनाथ मन्दिर में किसकी मूर्ति प्रतिष्ठित है ?

त्राता वयं भगवति प्रथमं त्वया वै देवारिसंभवभयादधुना तथैव। भीतोऽस्मि देवि वरदे शरणं गतोऽस्मि घोरं निरीक्ष्य मधुना सह कैटभं च। इन दोनों दानवों को देखकर में भयभीत हो गया हूँ। पहले भी आपने देवताओं को दैत्यों के आतंक से बचा�....

त्राता वयं भगवति प्रथमं त्वया वै देवारिसंभवभयादधुना तथैव।
भीतोऽस्मि देवि वरदे शरणं गतोऽस्मि घोरं निरीक्ष्य मधुना सह कैटभं च।
इन दोनों दानवों को देखकर में भयभीत हो गया हूँ।
पहले भी आपने देवताओं को दैत्यों के आतंक से बचाया है।
मैं आपके शरण में आया हूँ कृपया मेरी रक्षा कीजिये।
नो वेत्ति विष्णुरधुना मम दुःखमेतज्जाने त्वयात्मविवशीकृतदेहयष्टिः।
मुञ्चामि देहमथवा जहि दानवेन्द्रौ यद्रोचते तव कुरुष्व महानुभावे।
भगवान विष्णु के शरीर का एक एक ‌अंग अब आपके वश में हैं।
मेरे इस संकट को वे नहीं जान पा रहे हैं।
या तो आप इन दोनों को मार डालिये, या भगवान को जगाइए।
जानन्ति ये न तव देवि परं प्रभावं ध्यायन्ति ते हरिहरावपि मन्दचित्ताः।
ज्ञातं मयाद्य जननि प्रकटं प्रमाणं यद्विष्णुरप्यतितरां विवशोऽथ शेते।
आज मैं आप की महिमा को प्रत्यक्ष रूप से देख रहा हूँ।
मैं यह सामने देख रहा हूँ कि भगवान विष्णु तक आपके अधीन हैं।
जिसने इस बात को जान लिया हो वह कभी अन्य किसी देवता की आराधना क्यों करेगा?
सिन्धूद्भवापि न हरिं प्रतिबोधितुं वै शक्ता पतिं तव वशानुगमद्य शक्त्या।
मन्ये त्वया भगवति प्रसभं समावि प्रस्वापिता न बुबुधे विवशीकृतेव।
अब भगवती लक्ष्मी भी इनको जगा नहीं सकती; ऐसा लगता है।
क्यों कि आप के प्रभाव से वे भी निद्रा के वश में हो गयी हैं।
धन्यास्त एव भक्तिपरास्तवाङ्घ्रौ त्यक्त्वान्यदेवभजनं त्वयि लीनभावाः।
कुर्विन्ति ते विभजनं सकलं निकामं ज्ञात्वा समस्तजननीं किल कामधेनुम्।
इस लोक में वे प्राणी धन्य हैं जिनकी आपके चरणों में भक्ति और श्रद्धा हैं।
जो आपको ही सबकी जननी मानते हैं, जो सदा आपके ध्यान में ही लीन रहते हैं, जो सदा आपका ही भजन करते रहते हैं।
धीकान्तिकीर्तिशुभवृत्तिगुणादयस्ते विष्णोर्गुणास्तु परिहृत्य गताः क्व चाद्य।
बन्दीकृतो हरिरसौ ननु निद्रयात्र शक्त्या तवैव भगवत्यतिमानवत्याः।
भगवान की बुद्धि इस समय कहां चली गई?
भगवान की दीप्ति इस समय कहां चली गई?
उनके सारे गुण इस समय कहां चले गये?
आपकी शक्ति से ही वे इन सबको खोकर अब सो रहे हैं।
त्वं शक्तिरेव जगतामखिलप्रभावा त्वन्निर्मितं च सकलं खलु भावमात्रम्।
त्वं क्रीडसे निजविनिर्मितमोहजाले नाट्ये यथा विहरते सुकृते नटो वै।
एक अभिनेता, एक नाटक की रचना करके उसमें स्वयं अभिनय भी कर रहा है।
आपकी लीलाओं को देखकर ऐसा ही लगता है।
आपने ही इस मोहजाल को बनाया है और आप ही इस में लीलाएँ करती रहती हैं।
विष्णुस्त्वया प्रकटितः प्रथमं युगादौ दत्ता च शक्तिरमला खलु पालनाय।
त्रातं च सर्वमखिलं विवशीकृतोद्य यद्रोचते तव तथाम्ब करोषि नूनम्।
भगवान की सृष्टि आपने ही किया, क्यों?
जगत की पालन के लिये ।
अब समय है उनको इन दानवों को मारकर जगत की रक्षा करने की।
और आपने अभी उनको सुलाकर रखा है।
कुछ समझ नहीं पा रहा हूँ आपकी लीलाओं को।
सृष्ट्वात्र मां भगवति प्रविनाशितुं चेन्नेच्छास्ति ते कुरु दयां परिहृत्य मौनम्।
कस्मादिमौ प्रकटितौ किल कालरूपौ यद्वा भवानि हसितुं नु किमिच्छसे माम्।
मेरी सृष्टि भी आपके द्वारा ही हुई है।
इस उपहास का सामना करना था तो आपने मुझे इतना ऊँचा स्थान दिया ही क्यों?
इन दानवों की सृष्टि भी आपने ही किया, उनको अमरता का वर भी आपने ही दिया, क्यों?
ज्ञातं मया तव विचेष्टितमद्भुतं वै कृत्वाखिलं जगदिदं रमसे स्वतन्त्रा।
लीनं करोषि सकलं किल मां तथैव हन्तुं त्वमिच्छसि भवानि किमत्र चित्रम्।
अब मुझे समझ में आ गया है।
जैसे जगत की रचना करके बाद में आप ही उसका संहार करती है, वैसे आप मुझे भी इस समय नष्ट कर देना चाहती हैं।
इसमे कोई विचित्र बात नहीं है।
कामं कुरुष्व वधमत्र ममैव मातर्दुःखं न मे मरणजं जगदम्बिकेत्र।
कर्ता त्वयैव विहितः प्रथमं स चायं दैत्याहतोथ मृत इत्ययशो गरिष्ठम्।
अगर चाहे तो आप मेरा वध अपने हाथों कर दीजिए, इसमें मुझे ज़रा भी दुख नहीं है।
लेकिन अगर इन दानवों ने मुझे मार दिया तो कलंक आपके ऊपर ही लगेगा।
जिसको आपने जगत सृष्टि के लिये बनाया उसे दो मामूली दानवों ने मार दिया, ऐसे कहेंगे लोग।
उत्तिष्ठ देवि कुरु रूपमिहाद्भुतं त्वं मां वा त्विमौ जहि यथेच्छसि बाललीले।
नो चेत् प्रबोधय हरिं निहनेदिमौ यस्त्वत्साध्यमेतदखिलं किल कार्यजातम्।
आप उठिए, इस दुविधा को समाप्त कीजिए।
मेरा वध कीजिये या इन दानवों का।
ब्रह्माजी द्वारा एसे स्तुति किये जाने पर निद्रा देवी भगवान के शरीर से निकलकर पास में खडी हो गयी।
भगवान के शरीर में चेतना वापस आ गयी।
ये सब देखकर ब्रह्मा जी खुश हो गये।

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