हां। हनुमानजी अभी भी जीवित हैं। अधिकांश समय, वे गंधमादन पर्वत के शीर्ष पर तपस्या करते रहते हैं। श्रीराम जी का अवतार २४ वें त्रेतायुग में था। लगभग १.७५ करोड़ वर्ष बाद वर्तमान (२८वें) चतुर्युग के द्वापर युग में भीम उनसे तब मिले जब वे सौगंधिक के फूल लेने जा रहे थे। हनुमान जी आठ चिरंजीवियों में से एक हैं। वे इस कल्प के अंत तक रहेंगे जो २,३५,९१,४६,८७७ वर्ष दूर है।
सम्यक् शतं क्रतून्कृत्वा यत्फलं समवाप्नुयात्। तत्फलं समवाप्नोति कृत्वा श्रीचक्रदर्शनम् ।। - सैकड़ों यज्ञों को सही ढंग से करने पर व्यक्ति धीरे-धीरे उनके फल प्राप्त करता है। लेकिन केवल श्री चक्र का दर्शन मात्र से वही परिणाम तुरंत प्राप्त हो जाते हैं।
भगवान श्री हरी ने मधु और कैटभ के साथ साढे पाँच हजार वर्षों तक युद्ध किया था। यह सुनकर ऋषि मुनि लोग उत्सुक हो गये उस कथा को सुनने। ये दानव क्यों उत्पन्न हुए? कैसे उत्पन्न हुए और भगवान ने उनका वध कैसे किया? ये सब विस्तार से ज....
भगवान श्री हरी ने मधु और कैटभ के साथ साढे पाँच हजार वर्षों तक युद्ध किया था।
यह सुनकर ऋषि मुनि लोग उत्सुक हो गये उस कथा को सुनने।
ये दानव क्यों उत्पन्न हुए?
कैसे उत्पन्न हुए और भगवान ने उनका वध कैसे किया?
ये सब विस्तार से जानना चाहा उन्होंने।
ऋषिगण बोले: जो मूर्खों के संपर्क में रहता है उसका हमेशा अनिष्ट ही होता है।
जब कि जो विद्वानों के संपर्क में रहता है उसके जीवन में प्रगति होती है।
जानवर और आदमी में क्या फरक है?
दोनों ही खाते हैं, दोनों ही पीते हैं दोनों ही सोते हैं दोनों ही प्रजनन भी करते हैं।
लेकिन क्या फरक है मनुष्य और जानवर में?
विवेक, यही एक फरक है ।
अच्छा क्या है बुरा क्या है जानवरों को यह नहीं पता।
भविष्य जैसा कुछ है, वह अच्छा हो इसके लिये प्रयास करना चाहिये, यह जानवरों को पता नही है।
ज्ञान क्या है उनको नही पता, ज्ञान से क्या लाभ है उनको नही पता।
इसलिये कहते हैं जो आदमी ज्ञान पाने की कोशिश नहीं करता है, उस में और जानवर में कोई फरक नहीं है।
जो आदमी मौका मिलने पर भी उत्तम बातों को सुनने पर श्रद्धा नहीं रखता, उसमें और जानवर में कोई फर्क नहीं है।
श्रवण भी तीन तरह के हैं: सात्विक, राजसिक और तामसिक।
वेद, शास्त्र, पुराण, भजन, कीर्तन- इनका श्रवण है सात्विक।
साहित्य, नाटक, काव्य, प्रबंध जिनका संबंध लौकिक व्यवहार से है, इनका श्रवण राजसिक।
युद्ध की बातें, इनको सुनना तामसिक श्रवण है।
सात्विक श्रवण तीन तरह के हैं।
उत्तम श्रवण वह है जिससे मोक्ष मिलता है।
मध्यम श्रवण वह है जिससे स्वर्ग मिलता है।
अधम श्रवण वह है जिससे से लौकिक सुख भोग मिलते हैं।
अधम का मतलब नीच नहीं है।
अधम का मतलब है, इन तीनो मे सबसे निम्न।
साहित्य, राजसिक श्रवण भी तीन तरह के हैं।
जिसमें अपनी ही पत्नी के गुणों का वर्णन है, वह उत्तम।
जिसमें वेश्या का वर्णन है, वह मध्यम।
और जिसमें परस्त्री का वर्णन है, वह अधम।
तामस श्रवण में अगर युद्ध किसी दुष्ट दुरात्मा के संहार के लिए हो और उसका वर्णन हो तो, उत्तम।
द्वेष के कारण लडाई जैसे पांडव और कौरव के बीच हुआ था, इसका श्रवण मध्यम।
कलह और विवाद के कारण युद्ध की कहानियों को सुनना, अधम तामसिक श्रवण।
इन सब में बहुत ही श्रेष्ठ है पुराणों का श्रवण, जिससे पुण्य भी मिलता है, पाप भी नष्ट हो जाते हैं और बुद्धि का भी विकास होता है।
सूतजी सुनाने लगे: प्रलय के बाद भगवान विष्णु शेष शैया पर लेटे थे।
उनके कान के मैल से दो दानव उत्पन्न हुए जिनके नाम थे मधु और कैटभ।
देखते देखते दोनों आकार में बढने लगे।
दोनों समंदर में इधर उधर घूमने लगे और खेलने लगे।
दानवों ने सोचा: इतना बड़ा समंदर, लेकिन इसका आधार क्या है ,कोई तो बर्तन होगा जिसके अंदर यह पानी भरा है।
कुछ तो शक्ति होगी जिसके प्रभाव से इतना सारा पानी यहां टिका हुआ है।
और हमारी स्थिति का कारण भी वही शक्ति होगी।
वही शक्ति होगी हमारा भी आश्रय।
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