महाभारत के अन्तर्गत सत्यवती की कथा बहुत दिलचस्प है। सत्यवती पांडवों और कौरवों की परदादी थी।
पिता - चेदीके राजा वसु। इनको उपरिचर भी कहते थे।
मां - अद्रिका (श्राप के कारण मछली बनी एक अप्सरा)
पालक पिता - दाशराज (एक मछुआरा प्रमुख)
भाई - राजा मत्स्य
पति - कुरु वंश के राजा शांतनु।
पुत्र - व्यास (पराशर से), चित्रांगद, और विचित्रवीर्य (शांतनु से)।
पौत्र - धृतराष्ट्र, पांडु और विदुर।
परपोते - पांडव और कौरव।
सत्यवती अपने पिछले जन्म में अच्छोदा नामक एक दिव्य स्त्री थीं। वे बर्हिषद पितरों के कुल से उत्पन्न हुई थी। वे तीव्र तपस्या में लगी तो पितर उसके सामने आए। वे उनमें से अमावसु नामक एक की ओर आकर्षित हो गई। यह बात पितर लोग जान गये। उन्होंने अच्छोदा को पृथ्वी पर जन्म लेने का श्राप दिया। उन्होंने अच्छोदा से कहा कि राजा शांतनु से विवाह करने और दो बेटों को जन्म देने के बाद इस शाप से मुक्ति मिलेगी। वे भगवान विष्णु के एक अवतार को भी जन्म देगी। पृथ्वी पर अपना वास पूरा करने के बाद, सत्यवती पितृलोक लौट गई। अब उन्हें अष्टका के रूप में पूजा जाता है।
वसु एक राजा थे। वे मोक्ष प्राप्त करना चाहते थे और इसके लिए तपस्या करने लगे। इंद्र ने उन्हें वापस आने और चेदी के राजा के रूप में पदभार संभालने के लिए राजी कराया। उस समय तक, वसु ने बहुत आध्यात्मिक शक्ति प्राप्त कर ली थी। इंद्र ने उन्हें एक विमान (रथ जो उड़ सकता है) और वैजयंती-माला भी भेंट की। विमान में वे अपने पूरे राज्य के ऊपर चलते थे और देखते थे कि क्या हो रहा है। इस वजह से वे उपरिचर के नाम से भी जाने जाते थे।
राजा वसु ने गिरिका से विवाह किया। अपनी पत्नी के साथ समागम से पहले ही राज्य के एक दूर के हिस्से पर जंगली जानवरों ने हमला कर दिया। राजा को उनका शिकार करने के लिए अचानक जाना पड़ा। दूर होते हुए भी उनका मन गिरिका के विचारों से भरा हुआ था। जैसे वे पत्नी के साथ पहले समागम की कल्पना करते गये, उनका वीर्य बाहर आ गया।
उन दिनों के लोग नर-नारी मिलन का उद्देश्य मुख्य रूप से प्रजनन के लिए ही समझते थे। वेदों के अनुसार वीर्य पूरे शरीर और आत्मा का सार है। राजा वसु नहीं चाहते थे कि उनका वीर्य व्यर्थ हो जाए। उन्होंने अपने वीर्य को एक पत्ते के प्याले में रखा और एक बाज को बुलाकर उसे अपनी रानी के पास ले जाने के लिए कहा। राजा चाहते थे कि रानी उस वीर्य द्वारा गर्भधारण कर लें। आपको पता ही होगा, ऋषि भरद्वाज ने भी एक पत्ते के प्याले में अपना वीर्य एकत्र किया था जो एक अप्सरा को देखने पर निकल गया था। इससे ही द्रोणाचार्य का जन्म हुआ।
बाज पत्ती के प्याले को राजधानी की ओर ले गया। रास्ते में एक अन्य बाज ने उसे देखा और सोचा कि वह कुछ खाना ले जा रहा होगा। वे दोनों मध्य आकाश में लड़े। वीर्य नीचे नदी में गिर गया।
ब्रह्मा जी ने आद्रिका नामक अप्सरा को मछली बनने का श्राप दिया था। वह नीचे नदी में थी और वीर्य उसके ठीक सामने आ गिरा। उसने इसे निगल लिया और गर्भवती हो गई। जब अद्रिका (मछली) ने गर्भावस्था के दस महीने पूरे किए तो वह मछुआरों के जाल में फंस गई। जब उन्होंने उसे काटा तो अंदर दो बच्चे मिले, एक लड़का और एक लड़की।
वह कन्या थी सत्यवती।
मछुआरे जुड़वा बच्चों को राजा वसु के पास ले गए। राजा ने पहचान लिया कि वे उनके ही बच्चे थे। उन्होंने लड़के को स्वीकार कर लिया और मछुआरों के प्रमुख (दाशराज) से कहा कि वह उस लड़की को अपनी बेटी के रूप में पाले।
राजा ने ऐसा क्यों किया?
राजा वसु के पास महान आध्यात्मिक शक्ति थी जिसे उन्होंने तप और इंद्र के आशीर्वाद से पाया था। वे अपने महल में बैठकर तीनों लोकों में जो कुछ हो रहा था, उसे देख सकते थे। वे भूत, वर्तमान और भविष्य को जानते थे। जैसे ही उन्होंने लड़की को देखा, समझ गये कि यह कोई और नहीं बल्कि अच्छोदा का पुनर्जन्म है। उसे भगवान विष्णु के एक अवतार को जन्म देना है। जिस रहस्यमय तरीके से यह होना है, वह तभी हो सकता है जब उसे मछुआरों के बीच एक साधारण लड़की के रूप में पाला जाए।
सत्यवती का नाम मत्स्यगंधा कैसे पड़ा?
चूंकि वह एक मछली के गर्भ से पैदा हुई थी, इसलिए उसके शरीर से मछली का गंध आता था। इसलिए लोग सत्यवती को मत्स्यगंधा कहने लगे।
सत्यवती यमुना नदी के किनारे मछुआरों के बीच पली-बढ़ी। वह लोगों को नदी पार कराकर उनकी मदद भी करती थी।
यह झूठा प्रचार है कि जब पराशर मुनि ने सुंदर सत्यवती को देखा, तो उन्होंने अपना नियंत्रण खो दिया और उसके साथ आनंद लेना चाहा। लेकिन सच्चाई यह नहीं थी। महाभारत ऐसा कुछ नहीं कहता है।
व्यास जी महाभारत के रचयिता हैं। पराशर मुनि उनके पिता थे और सत्यवती उनकी माता थीं। क्या आपको लगता है कि वे अपने ही पिता और माँ के बारे में इतना निंदनीय कुछ लिखेंगे?
व्यास जी जानते थे कि वे भगवान का अवतार हैं और वे अपने ही जन्म के बारे में लिख रहे थे। क्या आपको लगता है कि वे अपने जन्म के बारे में इतने तुच्छ और मूर्खतापूर्ण तरीके से लिखेंगे?
वास्तव में क्या हुआ था - जानिए।
पराशर मुनि जानते थे कि भगवान विष्णु उनके वीर्य से जन्म लेनेवाले थे। वे महान तपस्वी थे। उनसे कुछ भी छिपा नहीं था। वे यह भी जानते थे कि यह अवतार राजा वसु की बेटी के गर्भ से जन्म लेगा जो बाद में कुरु वंश की रानी बनेगी।
पराशर मुनि तीर्थ यात्रा पर थे। उन्होंने यमुना के तट पर आकर सत्यवती को देखा। सत्यवती को देखते ही वे जान गये कि वह राजा वसु की बेटी है।
यह महाभारत के निम्नलिखित श्लोक से स्पष्ट है -
दृष्ट्वैव स च तां धीमांश्चकमे चारुहासिनीम्।
दिव्यां तां वासवीं कन्यां रम्भोरुं मुनिपुङ्गवः।
पराशर मुनि को बुद्धिमान और मुनियों में सबसे महान कहा गया है। सत्यवती को दिव्या वासवी (वसु की पुत्री) कहा गया है। हां, यह बात जरूर है कि यदि स्त्री-पुरुष का मिलन होना है तो कामदेव को अपनी भूमिका निभानी होगी।
पराशर मुनि को पता चला कि श्रीहरि को अवतार लेने के लिए सत्यवती के गर्भ में अपना बीज बोने का समय आ गया है।
महाभारत में प्रयुक्त तीन और शब्द इस बात को और स्पष्ट करते हैं।
पराशर मुनि कहते हैं -
1. संगमं मम कल्याणि कुरुष्व - संगम का अर्थ है मिलन। इसका ऐसा कोई अर्थ नहीं है जो आनंद का संकेत देता है।
2. उवाच मत्प्रियं कृत्वा कन्यैव त्वं भविष्यसि - मेरी मनोकामना पूर्ण करो। एक सिद्ध तपस्वी की क्या मनोकामना हो सकती है?
उन लड़कियों के साथ मजा करना जिनसे वे तीर्थ यात्रा के दौरान मिलते हैं? कदापि नहीं।
पराशर मुनि, यदि वे चाहते तो उन्हें अप्सराओं को बुलाने या बनाने की भी शक्ति थी।
उनकी मनोकामना भगवान विष्णु के अवतार को पृथ्वी पर लाने के कार्य को पूरा करना थी। इससे धर्म की वृद्धि और अधर्म की च्युति होगी।
3. बाद में यह कहा गया है - संसर्गमृषिणाद्भुतकर्मणा - यहां भी प्रयुक्त शब्द संसर्ग है जो दर्शाता है कि उनके मिलन का प्राथमिक उद्देश्य सर्ग या रचना थी। भोग के लिए होता तो संभोग, रति या इसी तरह के शब्दों का प्रयोग होता।
पराशर मुनि ने जो किया वह एक अद्भुतकर्म था, चमत्कार, सिर्फ संगम नहीं।
इसमें चमत्कारी बात क्या थी?
सत्यवती ने पराशर मुनि को नदी के उस पार ले जाना शुरू किया। मुनि ने सत्यवती को आगे के कार्य के बारे में बताया। सत्यवती को कुछ आशंका थी - मैं एक अनुशासित बेटी हूं। अगर मैं अपनी कुंआरीपन खो दूंगी, तो लोग क्या कहेंगे?
मुनि ने उन्हें बताया कि बच्चे को जन्म देने के बावजूद वे कुंवारी ही रहेंगी।
नदी के दोनों किनारों पर लोग हैं। वे हमें देख लेंगे।
मुनि ने कोहरा बनाकर दोनों को छिपा लिया।
सत्यवती ने तुरंत अपनी गर्भावस्था पूरी की और नदी के बीच में एक द्वीप में बच्चे को जन्म दिया। बच्चा (व्यास जी) भी तुरंत बड़ा हो गया और वयस्क बन गया।
एक तोफे के रूप में, मुनि ने सत्यवती के शरीर के मछली के गंध को एक सुगंध में बदल दिया जिसे एक योजन दूर से महसूस किया जा सकता था। इसके बाद, सत्यवती को लोग योजनागंधा, गंधवती और गंधकाली इन नामों से पुकारने लगे।
सत्यवती अपने परिवार के साथ एक कुंआरी के रूप में ही रहती रही।
शांतनु की पत्नी गंगा ने उनके पास उन दोनों के पुत्र भीष्म को छोड़कर चली गयी थी। शांतनु ने एक बार सत्यवती को यमुना के तट पर देखा और उसे पसंद किया। शांतनु विवाह में उसका हाथ मांगकर दाशराज के पास पहुंचा।
दाशराज ने कहा - मुझे ऐसा करने में खुशी ही है, लेकिन मेरी एक शर्त है। आपके बाद, मेरी बेटी का बेटा ही राज करेगा।
शांतनु दुखी होकर वापस चले गये। वे भीष्म को कैसे हटा सकते हैं? राज्य पर भीष्म का ही अधिकार था। लेकिन भीष्म उनका इकलौता पुत्र था। क्षत्रिय को कभी भी शस्त्र उठाने के लिए तैयार रहना चाहिए। क्या होगा अगर भीष्म को कुछ हो गया तो? वह महान कुरु-वंश का अंत होगा। यही कारण था कि शांतनु दोबारा विवाह करना चाहते थे। लेकिन भीष्म को उनके अधिकार से वंचित करना अनुचित होगा।
जब भीष्म ने अपने पिता को दयनीय स्थिति में देखा तो वे सिंहासन पर अपना अधिकार छोड़ने के लिए तैयार हो गए। उन्होंने जाकर दाशराज से मुलाकात की।
दाशराज ने भीष्म से कहा - सत्यवती वास्तव में राजर्षि वसु की पुत्री है। उन्होंने ही मुझे बताया है कि कुरु राजा शांतनु के अलावा कोई भी उसके लिए योग्य पति नहीं हो सकता। लेकिन उनका पहले से ही एक बेटा है जो आप हैं। सत्यवती के पुत्र कभी भी खुद को आपसे बेहतर साबित नहीं कर पाएंगे। आपसे बेहतर कोई नहीं है। फिर उनका भविष्य क्या होगा?
भीष्म ने सबके सामने घोषणा की कि सत्यवती का पुत्र हस्तिनापुर का भावी राजा होगा।
दाशराज: मुझे आप पर भरोसा है। आप का वचन अटल रहेगा। लेकिन आपके बेटों का क्या? क्या होगा अगर वे सिंहासन के लिए दावा करते हैं तो?
उस समय भीष्म ने अपना प्रसिद्ध शपथ किया - मैं जीवन भर ब्रह्मचारी रहूंगा। मैं कभी विवाह नहीं करूंगा।
भीष्म स्वयं सत्यवती (अपनी होने वाली माँ) को अपने रथ में हस्तिनापुर ले गए। सत्यवती और शांतनु का विवाह हुआ।
सत्यवती के दो पुत्र थे - चित्रांगद और विचित्रवीर्य।
शांतनु के बाद चित्रांगद राजा बने। भीष्म के मार्गदर्शन में उन्होंने कई राजाओं को हराया और अपने राज्य का विस्तार किया। एक गंधर्व ने चित्रांगद को युद्ध के लिए चुनौती दी। वे कुरुक्षेत्र में तीन साल तक लड़े और चित्रांगद मारे गए।
विचित्रवीर्य जो अभी बहुत छोटा था राजा बने। भीष्म ने ही सत्यवती के समर्थन से उनकी ओर से शासन किया।
काशी के राजा की तीन बेटियाँ थीं - अंबा, अंबिका और अंबालिका। उनके स्वयंवर का आयोजन किया गया था। भीष्म उन्हें अपने भाई विचित्रवीर्य के लिए बलपूर्वक दुल्हन के रूप में ले आए। क्षत्रिय-धर्म में इसकी अनुमति थी।
अंबा वापस चली गई। अंबिका और अंबालिका रुकी रही। सात साल बाद विचित्रवीर्य की तपेदिक से मृत्यु हो गई।
कुरु-वंश पर संकट आ गया। सत्यवती के दोनों पुत्र निःसंतान मर चुके हैं। भीष्म ने विवाह न करने का प्रण लिया है। सत्यवती ने भीष्म को राजा बनने और अपने भाई की पत्नियों को अपनी रानियों के रूप में लेने के लिए मनाने की बहुत कोशिश की। भीष्म नहीं माने। सत्यवती ने भीष्म को बताया कि पराशर मुनि से उनका एक और पुत्र है।
व्यास नी ने अपने जन्म के समय ही वादा किया था कि जब भी उनकी मां उन्हें याद करेंगी तो वे उनके पास आएंगे। सत्यवती ने व्यास जी को याद किया और वे प्रकट हुए। सत्यवती ने व्यास जी को वंश की निरंतरता के लिए विचित्रवीर्य की पत्नियों में से किसी एक को गर्भवती करने के लिए मना लिया। इसे नियोग कहते हैं।
बाद में सत्यवती ने अंबिका को मना लिया। जब व्यास जी अंबिका से संगम किया, तो उसने डर के मारे अपनी आँखें बंद कर ली थीं। व्यास जी का रूप भयावह था। इस वजह से उसका बेटा (धृतराष्ट्र) अंधा पैदा होगा।
जब व्यास जी ने सत्यवती को यह बताया, तो उन्होंने उसे अंबालिका को गर्भवती करने के लिए कहा। व्यास जी को देखते ही अंबालिका पीली पड़ गई। उसका पुत्र (पांडु) पीला पैदा हुआ था।
धृतराष्ट्र के जन्म के बाद, सत्यवती ने व्यास जी से अंबिका को फिर से गर्भवती करने के लिए कहा। अंबिका ने उसकी जगह अपनी दासी को व्यास जी के पास भेज दिया। इनके मिलन से उत्पन्न हुए पुत्र का नाम था विदुर।
पांडु के दाह संस्कार के बाद, व्यास जी ने सत्यवती को बताया कि कुरु-वंश के लिए आगे क्या है। वे दर्द सहन नहीं कर पाएंगी। उन्हें जंगल में जाकर ध्यान और योग करना चाहिए। सत्यवती ने अंबिका से कहा कि उसके पोते (कौरव) कुरु-वंश के विनाश का कारण बनेंगे। वे अंबालिका को लेकर वन जा रही थीं। पर उनके साथ अंबिका भी निकल गयी।
तीनों ने अपना शेष जीवन जंगल में बिताया। मृत्यु के बाद, सत्यवती वापस पितृलोक चली गई जहाँ से वह आई थी। सत्यवती की बहुओं (अंबिका और अंबालिका) ने स्वर्गलोक को प्राप्त किया।
सत्यवती सांवले रंग की थीं। व्यास जी को भी यही रंग मिला। व्यास जी का असली नाम था कृष्ण द्वैपायन।
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घी, दूध और दही के द्वारा ही यज्ञ किया जा सकता है। गायें अपने दूध-दही से लोगों का पालन पोषण करती हैं। इनके पुत्र खेत में अनाज उत्पन्न करते हैं। भूख और प्यास से पीडित होने पर भी गायें मानवों की भला करती रहती हैं।
व्यक्तिगत भ्रष्टाचार अनिवार्य रूप से व्यापक सामाजिक भ्रष्टाचार में विकसित होता है। सनातन धर्म के शाश्वत मूल्य- सत्य, अहिंसा और आत्म-संयम- एक न्यायपूर्ण और सामंजस्यपूर्ण समाज को बनाए रखने के लिए आवश्यक हैं। केवल इन गुणों की घोषणा करना ही पर्याप्त नहीं है; उन्हें व्यक्तिगत स्तर पर वास्तव में अभ्यास किया जाना चाहिए। जब व्यक्तिगत अखंडता से समझौता किया जाता है, तो यह एक लहरदार प्रभाव पैदा करता है, जिससे सामाजिक मूल्यों का ह्रास होता है। यदि हम व्यक्तिगत सत्यनिष्ठा के महत्व को नजरअंदाज करेंगे तो समाज को विनाशकारी परिणाम भुगतने होंगे। समाज की रक्षा और उत्थान के लिए प्रत्येक व्यक्ति को इन मूल्यों को अपनाना चाहिए और अटूट निष्ठा के साथ कार्य करना चाहिए।