अन्नदान एक बहुत ही महान और प्रभावशाली दान है।
अन्नदान दानों में सबसे आसान है ।
आइए देखते हैं अन्नदान और साधारण दान में भेद क्या है ।
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साधारण दान में देश, काल और पात्र के विनिर्देशों को पूरा करना पडता है ।
तभी उसे दान के रूप में मान्यता प्राप्त होती है ।
देश का अर्थ है वह स्थान जहाँ दान किया जाता है।
यह स्थान उस विशेष दान के अनुरूप होना चाहिए जो किया जा रहा है।
सामान्य तौर पर, पुण्य नदियों के तट पर या काशी जैसे पवित्र स्थानों पर किया जाने वाला दान स्थान की पवित्रता के कारण अधिक फलदायी होता है।
इससे दान के पुण्य की वृद्धि होती है।
यह इसलिए भी है क्योंकि पवित्र स्थानों पर दान करने में अधिक मेहनत लगती है और खर्च भी।
उदाहरण के लिए, आप दिल्ली के निवासी हैं, किसी को घर बुलाना और उसे कपड़े देना आसान है।
काशी तक जाकर वही करने के लिए अधिक शारीरिक प्रयास और खर्च भी करना पड़ता है।
तो अगर आपका संकल्प दृढ है, तभी काशी तक जाकर पुण्य करेंगे ।
दान के फल में आपका विश्वास दृढ है तो ही ऐसा करेंगे ।
यह दान की गुणवत्ता और उसके परिणाम को बढ़ाता है।
सामान्यत: जिस स्थान पर दान किया जाता है वह स्थान स्वच्छ, शांत और पवित्र होना चाहिए।
आप जब चाहें दान नहीं कर सकते।
मान लीजिए कोई दान ग्रहण के समय करना है, तो इसे उसी समय पर करना होगा, अन्यथा यह प्रभावी नहीं होगा।
आप अनुचित समय पर दान नहीं कर सकते, जैसे आधी रात को ।
यदि आप अनुचित समय पर दान करते हैं तो वह प्रभावी नहीं होगा।
प्राप्तकर्ता को पात्र कहते हैं ।
पात्र की गुणवत्ता बहुत महत्वपूर्ण है।
यदि आप अनुचित व्यक्ति को दान देते हैं, तो उसका कोई अच्छा परिणाम नहीं निकलेगा।
देखिए, दान के साथ ज्यादातर कुछ पाप जुड़े हुए होते हैं।
इसी पाप को शांत करने के लिए दान दिया जाता है।
या पुण्य पाने के लिए।
जब आप पाप को कम करने के लिए दान कर रहे हैं, तो वास्तव में क्या हो रहा है ?
अपने पाप को उस द्रव्य के माध्यम से किसी और को सौंप देते हैं ।
वह इसे आपसे लेता है और उसका परिणाम भुगतता है ।
वह ऐसा क्यों करेगा?
शुल्क के लिए। दक्षिणा के लिए, या उस द्रव्य का आनंद लेने ।
आप उसे जो कुछ भी दे रहे हैं उसका आनंद लेने के लिए उस प्राप्तकर्ता को साथ ही साथ आपके पाप के परिणाम को भी भुगतना होगा ।
यह दवाओं की तरह है ।
हर दवा का कोई लाभ है तो उससे जुड़ा कोई दुष्प्रभाव भी होता है।
रोगी को दवा देने से पहले डॉक्टर इनकी तुलना करता है ।
इसलिए हम डॉक्टरों के पास जाते हैं।
अन्यथा, हम जब चाहें चावल या सब्जियों जैसी सभी दवाएं खरीद लेते और इस्तेमाल करते ।
हम ऐसा नहीं करते हैं, क्योंकि हर दवा के साथ एक जोखिम जुड़ा होता है।
यह केवल डॉक्टर ही जानता है।
यहां, जब आप एक दान देते हैं, तो प्राप्तकर्ता को वही जोखिम-लाभ विश्लेषण करके ही स्वीकार करना चाहिए ।
इस दान को स्वीकार करने से मुझे क्या लाभ हो रहा है और क्या नुकसान होगा?
एक गुरुकुल था ।
कोई उन्हें एक गाडी दान में देना चाह रहा था।
महाराष्ट्र में पंजीकृत एक गाडी, लंबे समय तक उपयोग नहीं की गई और वे इस गाडी को तमिलनाडु में एक गुरुकुल को दान करना चाह रहे थे।
तो तमिलनाडु के इस गुरुकुल के लोगों ने मुझसे पूछा।
आम तौर पर जब ऐसा कोई ऑफर आता है तो कोई सोचता भी नहीं है ।
लेकिन, इस मामले में उन्होंने मुझसे पूछा कि स्वीकार करना है या नहीं।
मैंने कहा रुको ।
यहाँ कुछ गड़बड़ है।
कोई महाराष्ट्र से गाडी लेकर तमिलनाडु में दान क्यों करेगा?
दान देनेवालों की एक और मांग थी कि दान से पहले ही नाम बदल दो गाडी के कागजातों में ।
मैंने कहा यह ठीक नहीं है।
एकदम नयी गाडी, उन्होंने इसे किसी उद्देश्य से खरीदा होगा।
वे इस तरह क्यों दे रहे हैं?
यदि वे एक अच्छे उद्देश्य के लिए गाडी दान करना चाहते हैं, तो उन्हें शुरू में ही खुद आकर पूछना चाहिए कि कौन सी गाडी उपयोगी होगी गुरुकुल के लिए।
वे तमिलनाडु में ही गुरुकुल के नाम पर ही खरीद सकते थे और दे सकते थे।
मैंने कहा ठीक है, आप इसे ले सकते हैं पर जो भी उससे जुडा दोष है उसे टालने के लिए गायत्री मंत्र का दस लाख जाप करें ।
यह संभव नहीं था, इसलिए उन्होंने मना कर दिया।
उन्होंने कहा कि गाडी हमें नहीं चाहिए।
बाद में पता चला कि उस गाडी की पहली यात्रा में ही दुर्घटना होकर एक संपूर्ण परिवार नष्ट हो गया था ।
कोई उस गाडी को रखना नहीं चाहता था ।
प्राप्तकर्ता के पास दान से जुड़े पाप को जलाने की क्षमता होनी चाहिए।
उसके पास तप शक्ति होनी चाहिए।
उस पाप को जलाने का मार्ग उसे पता होना चाहिए ।
उसे भस्मक की तरह काम करना पड़ता है, जिसमें पाप जलते हैं।
उसे जिम्मेदारी से काम लेना होगा।
अन्यथा, दान प्राप्त करना हानिकारक है।
इसलिए शास्त्र कहता है, इस बात का ध्यान रखें कि आप इसे किसे देने जा रहे हैं।
क्या उसके पास उस पाप को जलाने की क्षमता है ?
और वह उसे कैसे करना है यह जानता है ?
वेद में इस अवधारणा से जुड़े मंत्र हैं।
तो अगर आप अनुचित व्यक्ति को दान दे रहे हैं, तो सचमुच देखा जाएं तो उसे पीडा ही दे रहे हैं ।
यह दूसरे के घर में अपना कचरा डाल देना जैसा है ।
वह नहीं जानता कि इसका क्या किया जाए।
भले ही वह आपसे शुल्क ले रहा हो, लेकिन वह नहीं जानता कि इसका क्या किया जाए।
आप उसे नुकसान पहुंचा रहे हैं।
तो, शुरू से, आपके पास एक पाप है, जिसके शमन के लिए आप दान कर रहे हैं, अब आप गैर-जिम्मेदाराना तरीके से किसी और को पीड़ित करके उसके साथ एक और पाप को जोड़ देते हैं।
इसलिए, दान करते समय सावधान रहें।
जब तक आप इसे एक सरल भावना से करते हैं, तब तक इसके साथ इतने सारे मुद्दे नहीं जुड़े होते हैं।
देश - कोई बात नहीं, जहाँ भी भूखे लोग मिले, दे दो।
बस स्वच्छता सुनिश्चित करें।
काल - कोई बात नहीं, आधी रात हो, मध्याह्न हो, जब भी कोई भूखा है, भोजन दे दो ।
पात्र - कोई बात नहीं - जो भूखा हो उसे दे दो ।
लेकिन यहाँ अमीर और गरीब के बीच भेदभाव मत करो।
यह मत देखो कि उसके पास खुद खाना पाने के लिए पैसे हैं या नहीं।
अन्नदान पात्रता की एक ही कसौटी होनी चाहिए कि वह भूखा हो।
इस प्रकार अन्नदान करेंगे तो वह महान फल देता है ।
इस शरीर के माध्यम से जीव अपने पुण्य और पाप कर्मों के फलस्वरूप सुख-दुख का अनुभव करता है। इसी शरीर से पापी यमराज के मार्ग पर कष्ट सहते हुए उनके पास पहुँचते हैं, जबकि धर्मात्मा प्रसन्नतापूर्वक धर्मराज के पास जाते हैं। विशेष रूप से, केवल मनुष्य ही मृत्यु के बाद एक सूक्ष्म आतिवाहिक शरीर धारण करता है, जिसे यमदूत यमराज के पास ले जाते हैं। अन्य जीव-जंतु, जैसे पशु-पक्षी, ऐसा शरीर नहीं पाते। वे सीधे दूसरी योनि में जन्म लेते हैं। ये प्राणी मृत्यु के बाद वायु रूप में विचरण करते हुए किसी विशेष योनि में जन्म लेने के लिए गर्भ में प्रवेश करते हैं। केवल मनुष्य को अपने शुभ और अशुभ कर्मों का फल इस लोक और परलोक दोनों में भोगना पड़ता है।
गरुड की मां है विनता। सांपों की मां है कद्रू। विनता और कद्रू बहनें हैं। एक बार, कद्रू और उनके पुत्र सांपों ने मिलकर विनता को बाजी में धोखे से हराया। विनता को कद्रू की दासी बनना पडा और गरुड को भी सांपों की सेवा करना पडा। इसलिए गरुड सांपों के दुश्मन बन गये। गरुड ने सांपों को स्वर्ग से अमृत लाकर दिया और दासपना से मुक्ति पाया। उस समय गरुड ने इन्द्र से वर पाया की सांप ही उनके आहार बनेंगे।
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