यह बहुत दिलचस्प है।
आज के दिन उनका असली नाम कृष्ण द्वैपायन है।
इस नाम के दो भाग हैं।
कृष्ण + द्वैपायन।
कृष्ण - काले रंग के।
द्वैपायन - द्वीप पर पैदा हुआ।
व्यास की माता थी सत्यवती ।
वह पराशर ऋषि को यमुना नदी के पार ले जा रही थी नाव से ।
उनका मिलन नदी के एक द्वीप पर हुआ था।
सत्यवती ने तुरंत गर्भावस्था पूरी की और उस द्वीप पर ही व्यास जी को जन्म दिया ।
हाँ।
व्यास एक पद है।
वर्तमान चतुर्युग में, जो वर्तमान मन्वंतर (वैवस्वत) में अट्ठाईसवां है, कृष्ण द्वैपायन व्यास जी के पद पर प्रतिष्ठित हैं ।
यह पूरी सूची है।
प्रथम - स्वायंभुव
दूसरा - प्रजापति
तीसरा - उशना
चौथा - बृहस्पति
पांचवां - सविता
छठा - मृत्यु
सातवां - इंद्र
आठवां - वशिष्ठ
नौवां - सारस्वत
दसवां - त्रिधा
ग्यारहवां - त्रिवृष
बारहवां - भरद्वाज
तेरहवां - अन्तरिक्ष
चौदहवां - वप्री
पन्द्रहवां - त्रय्यारुण
सोलहवां - धनंजय
सत्रहवां - क्रतुंजय
अठारहवां - ऋणज्य
उन्नीसवां - भरद्वाज
बीसवां - गौतम
इक्कीसवां - हर्यात्मा
बाईसवां - वाजश्रवा
तेईसवां - तृणबिन्दु
चौबीसवां - वाल्मीकि
पच्चीसवां - शक्ति
छब्बीसवां - पराशर
सत्ताईसवां - जातुकर्ण
अट्ठाईसवां - कृष्ण द्वैपायन
आगामी उनतीसवें चतुर्युग के व्यास द्रोण के पुत्र अश्वत्थामा होंगे।
पुराण और महाभारत लिखना और वेदों का विभाग करना - ये व्यास जी की जिम्मेदारियां हैं ।
गौ माता की पूजा सारे ३३ करोड देवताओं की पूजा के समान है। गौ पुजा करने से आयु, यश, स्वास्थ्य, धन-संपत्ति, घर, जमीन, प्रतिष्ठा, परलोक में सुख इत्यादियों की प्राप्ति होती है। गौ पूजा संतान प्राप्ति के लिए विशेष फलदायक है।
ॐ आरिक्षीणियम् वनस्पतियायाम् नमः । बहुतेन्द्रीयम् ब्रहत् ब्रहत् आनन्दीतम् नमः । पारवितम नमामी नमः । सूर्य चन्द्र नमायामि नमः । फुलजामिणी वनस्पतियायाम् नमः । आत्मानियामानि सद् सदु नमः । ब्रम्ह विषणु शिवम् नमः । पवित्र पावन जलम नमः । पवन आदि रघुनन्दम नमः । इति सिद्धम् ।
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