आपस्तंब धर्मसूत्र २.५.११.७ के अनुसार जब नारी कहीं चलती है तो राजा सहित सबको रास्ता देना पडेगा।
ऋग्वेद मण्डल १०. सूक्त ८५ में स्त्रीधन का उल्लेख है। वेद में स्त्रीधन के लिए शब्द है- वहतु। इस सूक्त में सूर्यदेव का अपनी पुत्री को वहतु के साथ विदा करने का उल्लेख है।
मैं यह धार्मिक और आध्यात्मिक दृष्टि से कह रहा हूँ। हाँ पहले हुआ है, लोग हुए हैं असंतुष्ट सनातन धर्म से। क्यों ? जानकारी के अभाव से। हमसे हमारी सच्चाई छुपा दी गई। भेदभाव पैदा कर दिया गया। असत्य बोला गया, मनुस्मृति मे�....
मैं यह धार्मिक और आध्यात्मिक दृष्टि से कह रहा हूँ।
हाँ पहले हुआ है, लोग हुए हैं असंतुष्ट सनातन धर्म से।
क्यों ?
जानकारी के अभाव से।
हमसे हमारी सच्चाई छुपा दी गई।
भेदभाव पैदा कर दिया गया।
असत्य बोला गया, मनुस्मृति में उच्च स्तरीयों के लिये सुख ही सुख है और बाकी निर्बल लोगों का चूषण है।
जिस ग्रन्थ में बोला है:
यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः।
अर्थात- देवता लोग उस स्थान पर तुष्ट रहते हैं जहां नारियों की पूजा की जाती है।
जिस धर्म ने बोला है:
न गृहं गृहमित्याहुर्गृहिणी गृहमुच्यते।
घर को घर नहीं कहते, उस इमारत को घर नहीं कहते, घर कहते हैं गृहिणी को जो घर की मालकिन है, वह है घर।
उसका है घर। बाकी सब वहाँ रहने वाले हैं।
घर गृहिणी है, घर गृहिणी का है।
क्या इस धर्म में हो सकता है नारी के प्रति भेदभाव?
यह जो स्त्री समता की बात हो रही है, स्त्री शाक्तीकरण की बात हो रही है, सनातन धर्म के लिए यह कोई नई बात नहीं है।
होगी पश्चिम वासियों के लिए नई बात।
हमारे धर्म में:
स्वेच्छारूपः स्वेच्छया च द्विधारूपो बभूव ह।
स्त्रीरूपो वामभागांशो दक्षिणांशः पुमान् स्मृतः।
सृष्टि के समय ब्रह्मा ने अपने आपको दो भाग किया।
वाम भाग- स्त्री।
दक्षिण भाग- पुरुष।
इसमें असंतुलन दिखाई पडता है?
असमता दिखाई पड़ती है?
हिन्दू धर्म में पुरुष के तुल्य है स्त्री।
इनको ये सब पता नहीं है।
वैदिक अनुष्ठान में, जो स्मृतियों के अनुसार है, जिसको स्मार्त कर्म बोलते हैं, जिस मानव स्मृति को तुम भेदभावी कह रहे हो उसके जैसे स्मृतियों में बताया हुआ अनुष्ठान; विवाह के बाद जिस अग्नि में विवाह होम किया उसे पति-पत्नी अपने घर ले आते हैं जिसको आजीवनांत बुझाये बिना पालते हैं, सुबह-शाम, उस अग्नि में आहुति देते हैं, उस अग्नि को कहते हैं औपासनाग्नि।
उस अग्नि का संरक्षक कौन है पता है?
पत्नी; पति नहीं?
आहुति देते समय पति पत्नि से अनुमति लेता है, कहता है कि मैं आहुति देने जा रहा हूँ: होष्यामि।
पत्नी कहती है: जुहुधि, हां दे सकते हो।
तब जाकर पति आहुति दे सकता है, नहीं तो नहीं।
पति के अभाव में पत्नी यह आहुति दे सकती है।
लेकिन पत्नी के अभाव में पति नहीं।
यह है स्थान स्त्रियों का हिन्दू धर्म में, सनातन धर्म में।
कहां से भेदभाव का आरोप आ गया इस में?
हाँ, धर्म को तोड़ने इस में बहुत सारी गलत प्रथाएं थोप दी गयी बाहर से, इन्हें सनातन धर्म मत समझो।
हम अपने धर्म को लेकर शर्मिंदा हो जाए , ऐसी प्रथाएं इसी के लिये हैं।
जो धर्म कहता है -
या देवी सर्वभूतेषु मातृरूपेण संस्थिता, नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।
समस्त प्राणियों में जो मातृत्व है वह कोई मनोविकार या भावुकता या राग नही।
वही साक्षात जगज्जननी महामाया है।
वही भगवान है।
इस धर्म में नारी के प्रति भेदभाव दिखाई पडता है तुम्हें?
अपप्रचार करते हो कि यह स्त्रियों के खिलाफ है, स्त्रियों को नीचा दिखाता है, स्त्रियों की निन्दा करता है, कैसे?
एक ही दण्ड के लिये ब्राह्मण को डांटा जाता है तो अन्य का सिर काटा जाता है ऐसे कहते हो।
यह सब असत्य है।
सनातन धर्म को तोड़ने का प्रयास है यह सब।
हमारी सच्चाई को हमसे छुपाकर, हमारी सच्चाई को ऐंठकर हमें दिखाया जा रहा है।
हमारे बारे मैं हमें हि शर्मिन्दा किया जा रहा है, इस असत्य को हमने मान लिया है सत्य समझकर।
कारण- सच्ची जानकारी का अभाव।
अब ऐसा नहीं होगा क्यों कि नौजवान जागृत हो गये हैं धर्म के प्रति।
अब ऊर्जा है सनातन धर्म में।
इन झूठों को ललकारने का धैर्य, शक्ति वापस आई है सनातन धर्म में।
अपनी सच्चाई में गर्व वापस आ गया है सनातन धर्म में, देवी मां की कृपा कटाक्ष से।
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